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मंगलवार, 27 मार्च 2012
रविवार, 25 मार्च 2012
खदेरन की बीमारी
खदेरन बहुत बीमार था। फुलमतिया जी उसे डॉक्टर के पा ले गईं।
डॉक्टर जियावन सिंह ने गहन जांच पड़ताल के बाद नुस्खे थमाते हुए फुलमतिया जी से कहा, “आपके पति की हालत ठीक नहीं है।”
“जी!”
“उन्हें पौष्टिक भोजन देना”
“जी!”
“उनके सामने हमेशा अच्छे मूड में रहिएगा।”
“जी!”
“उनसे अपनी समस्याओं की चर्चा कभी नहीं कीजिएगा।”
“जी!”
“सास बहू टाइप की टीवी सीरियल मत चलाइगा।”
“जी!”
“नए कपड़े और गहने की मांग तो भूलकर भी नहीं कीजिएगा।”
“जी!”
“यदि ऐसा आप साल भर करती हैं, तो आपके पति के ठीक होने के आसार हैं।”
फुलमतिया जी जब खदेरन को लेकर घर पहुंची तो खदेरन ने पूछा, “आपसे अकेले में डॉक्टर ने काफ़ी देर तक बात की। क्या कहा?”
फुलमतिया जी ने जवाब दिया, “आपके बचने की उम्मीद बहुत कम है!”
शुक्रवार, 23 मार्च 2012
अक्ल की बात
फुलमतिया जी की अक्ल पर उस दिन खदेरन को ताज़्ज़ुब हुआ।
दोनों बाज़ार गए थे। बाज़ार में सेल लगा था। एक दुकान के सामने एक रेट लिस्ट थी। फुलमतिया जी की नज़र उस पर गई। नायलोन साड़ी – 5 रु, कॉटन साड़ी – 7 रु, तांत साड़ी – 8 रु, सिल्क साड़ी – 10 रु।
यह पढ़कर फुलमतिया जी ने खदेरन से कहा, “मुझे 500 रु दे दो, मैं 50 साड़ियां खरीदूंगी।”
खदेरन ने फुलमतिया जी को समझाया, “फुलमतिया जी, ये साड़ी की दुकान नहीं, लौण्ड्री है।”
दूसरे दिन फुलमतिया जी सज-धज के निकल रही थीं। खदेरन के पास आईं और बोलीं, “मै बाज़ार जा रही हूं। मुझे 500 रु की ज़रूरत है।”
खदेरन को बीते कल का वाकया याद आ गया, हंसते हुए मज़ाक़ में बोला, “फुलमतिया जी आपको रुपयों से ज़्यादा अक्ल की ज़रूरत है।”
फुलमतिया जी ने ऊंचे स्वर में कहा, “तुमसे वही चीज़ मांग रही हूं, जो तुम्हारे पास है।”
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