फुलमतिया जी की अक्ल पर उस दिन खदेरन को ताज़्ज़ुब हुआ।
दोनों बाज़ार गए थे। बाज़ार में सेल लगा था। एक दुकान के सामने एक रेट लिस्ट थी। फुलमतिया जी की नज़र उस पर गई। नायलोन साड़ी – 5 रु, कॉटन साड़ी – 7 रु, तांत साड़ी – 8 रु, सिल्क साड़ी – 10 रु।
यह पढ़कर फुलमतिया जी ने खदेरन से कहा, “मुझे 500 रु दे दो, मैं 50 साड़ियां खरीदूंगी।”
खदेरन ने फुलमतिया जी को समझाया, “फुलमतिया जी, ये साड़ी की दुकान नहीं, लौण्ड्री है।”
दूसरे दिन फुलमतिया जी सज-धज के निकल रही थीं। खदेरन के पास आईं और बोलीं, “मै बाज़ार जा रही हूं। मुझे 500 रु की ज़रूरत है।”
खदेरन को बीते कल का वाकया याद आ गया, हंसते हुए मज़ाक़ में बोला, “फुलमतिया जी आपको रुपयों से ज़्यादा अक्ल की ज़रूरत है।”
फुलमतिया जी ने ऊंचे स्वर में कहा, “तुमसे वही चीज़ मांग रही हूं, जो तुम्हारे पास है।”
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हा-हा-हा ...
जवाब देंहटाएंमज़ेदार!
ha ha ha ha
जवाब देंहटाएंहा, हा, हा..........
जवाब देंहटाएंअक्ल तो हमारे पास भी नहीं
नहीं तो फुलमतिया को दे ही देते
:):) सही है
जवाब देंहटाएंसही है ..
जवाब देंहटाएंटू इं वन पोस्ट!!
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा उसने -पता नहीं लोग अपने आप क्यों नहीं समझ लेते ,हर बात पत्नी को समझानी पड़ती है !
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा...
जवाब देंहटाएंwah..hahahah
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूब ....
जवाब देंहटाएंअक्ल मांगना भी अक्ल का ही काम है.
जवाब देंहटाएं:))
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