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मंगलवार, 29 जून 2010

गड्ढा

गड्ढा


एक दिन सबेरे-सबेरे खदेरन अपने मुहल्ले से बाहर एक गड्ढा खोद रहा था। उसी समय फाटक बाबू नित्य टहलने के क्रम में उस जगह से गुज़रे।

खदेरन को गड्ढा खोदते देख उन्हें विस्मय हुआ। आश्चर्यमिश्रित उत्कंठा से पूछे, “अरे! खदेरन! यह क्या हो रहा है?”

खदेरन ने भोलेपन से जवाब दिया, “जी फाट्क बबू रात में मेरा तोता मर गया था। उसे ही दफ़नाना है।”

फाटक बाबू बोले, “वाह! ये तो अच्छी बात है भाई! लगता है तोते से तुम बहुत प्यार करते थे। लेकिन जहां तक मेरी समझ है,  एक तोते के लिहाज़ से यह गड्ढा तो काफ़ी बड़ा लग रहा है भाई। इतना बड़ा गड्ढा खोदने की क्या ज़रूरत आ पड़ी?”


खदेरन ने बड़े मासूमियत से जवाब दिया, “ऐसा है फाटक बाबू कि मेरा तोता, तो आपके कुत्ते के पेट में है न!”

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