एक दिन फाटक बाबू और खदेरन गार्डेन में टहल रहे थे। आपस में घर परिवार की बातें हो रही थी।
फाटक बाबू ने खदेरन से पूछा, “खदेरन बरतन कितना भी संभाल कर रखो आपस में टकरा तो जाते ही हैं।”
खदेरन ने सहमति जताई, “ठीके कहते हैं फाटक बाबू।”
फाटक बाबू ने सिर हिलाते हुए कहा, “हम्म! मतलब तुम्हारा भी फुलमतिया जी के साथ .. ?”
फाटक बाबू बात पूरी करते उसके पहले ही खदेरन बोल पड़ा, “हां फाटक बाबू !”
फाटक बाबू ने पूछा, “आच्छा खदेरन यह बताओ कि जब फुलमतिया जी से तुम्हारी लड़ाई हो जाती है, तो तुम क्या करते हो?”
खदेरन ने बताया, “फाटक बाबू! हम हमेशा समझौता कर लेते हैं।”
फाटक बाबू ने फिर पूछा, “कैसे?”
खदेरन ने बताया, “ऊ का है न फाटक बाबू, … मैं अपनी ग़लती मान लेता हूं, और फुलमतिया जी मेरी बातों से सहमत हो जाती हैं।”
बहुत खूब!!बढिया है।
जवाब देंहटाएंबढ़िया समझौता है
जवाब देंहटाएंbadhiya hai ye samjhota
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंयही एक मात्र तरीका है।
जवाब देंहटाएंहाहाहाहाहाहा कौन कहता है कि शांति के लिए पुरुषों को तपस्या करने की जरुरत है। सीदा सिंपल फार्मूला
जवाब देंहटाएंअंततः सहमति और समझौते में ही शांति है.
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