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गुरुवार, 20 अक्टूबर 2011

जब मति मारी जाए

 

जब मति मारी जाए

 

पत्नी के बगैर जिनका

एक पल काम चल न पाए

ऐसे लोगों की

जब मति मारी जाए

तो वे पत्नी से लड़ लेते हैं

और कुछ कर तो सकते नहीं

बोलना छोड़ देते हैं।

 

किसी छोटी सी बात पर

दिल अपना तोड़ लिया था

और

खदेरन ने फुलमतिया जी से

बोलना छोड़ दिया था।

 

अगले दिन उसे किसी काम से

सुबह चार बजे जाना था

और चार बजे उठने के लिए

फुलमतिया जी को मनाना था।

 

पर तभी उसका पुरुष अहं आड़े आया

‘पहले बोलना’

उसके मन को नहीं भाया।

 

बिना बोले भी काम चल जाए

उसने एक तरकीब निकाली

और फुलमतिया जी के नाम

एक चिट्ठी लिख डाली।

 

खत पर फिर से एक दृष्टिपात किया

और उसे फुलमतिया जी के

सिरहाने रख दिया।

 

लिखा था,

“देखो इसे तुम मेरा

सीजफ़ायर मत समझ लेना

जाना है ज़रूरी काम से

मुझे चार बजे जगा देना।

 

अगली सुबह जब उसकी आंख खुली

तो दीवार घड़ी नौ बजा रही थी।

उसकी ट्रेन तो

कब की जा चुकी थी।

 

गुस्से से उसका दिमाग भन्नाया

मन ही मन वह पत्नी पर

मन-ही-मन चिल्लाया

‘करम मेरी फूटी

जो इसके साथ लिए सात फेरे

जगा नहीं सकती थी

मुझको सुबह-सवेरे!’

 

तभी उसकी नज़र सिरहाने पर पड़ी

एक ख़त उसका इंतज़ार कर रहा था

खोला और देखा उसमें लिखा था

“अब हर बात में

मेरा ही दोष मत बताइए।

सुबह के चार बज गये हैं

जाग जाइए।”

19 टिप्‍पणियां:

  1. शांतिपूर्ण झगड़ा काफी मजेदार है. सुंदर हास्य कविता.

    बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर रचना ,बधाई.


    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.

    जवाब देंहटाएं
  3. रचना चर्चा-मंच पर, शोभित सब उत्कृष्ट |
    संग में परिचय-श्रृंखला, करती हैं आकृष्ट |

    शुक्रवारीय चर्चा मंच
    http://charchamanch.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  4. पुराने कथानक को नए कलेवर में पेश किया गया है जो अच्‍छा है।

    जवाब देंहटाएं
  5. आज की आपकी रचना बहुत अच्छी है।
    मज़ेदार!
    और फ़ेस बुक के मुताबिक आज आपका जन्म दिन है।
    जन्म दिन की शुभकामनाएं!!

    जवाब देंहटाएं
  6. जन्मदिन मुबारक हो. कविता के क्लेवर में रचना बहुत अच्छी लगी.

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