“अजी सुनते हो?” फुलमतिया जी ने खदेरन को पुकारा।
“हम्म” खदेरन का संक्षिप्त जवाब था।
“फाटक बाबू खंजन दी को काफ़ी महंगी-महंगी जगह घुमा कर लाए हैं।” फुलमतिया जी ने बताया।
किसी उधेर-बुन में लगा, खदेरन ने फिर “हूं-हां” में ही जवाब दिया।
यह देख फुलमतिया जी को लगा कि सीधे मुद्दे पर आया जाए। बोलीं, “मुझे भी किसी महंगी जगह घुमाने ले चलो ना!”
खदेरन उसी धुन में बोलता गया, “चलो तैयार हो जाओ, चलते हैं।”
खुश हुई फुलमतिया जी के मन में शंका भी जनमी, उन्होंने दूर करना ही उचित समझा। पूछीं, “कहां-कहां ले चलोगे?”
खदेरन ने बताया, “पहले पेट्रोल पंप चलेंगे, फिर गैस एजेन्सी के यहां और अंत में सब्जी मंडी!!”
:):) सबसे मंहगी जगह तो ले जा रहे हैं घुमाने ..
जवाब देंहटाएंवाह! क्या जगह चुनी है। यह खदेरन तो बहुत भारी चिन्तक और चतुर लगता है जी…
जवाब देंहटाएंखदेरन का संसार सच में बहुत मँहगा है. :)
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर , बधाई.
जवाब देंहटाएंhaa haa haa .akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंबढिया है..हाहााहाहाह
जवाब देंहटाएंसही है ...
जवाब देंहटाएंjabardast vyangay
जवाब देंहटाएंइसमें तो हास्य-फुहार दिखा ही नहीं!! सचाई है और अधिक से अधिक अश्रु-फुहार है!!
जवाब देंहटाएंमज़ेदार!
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा ...
:D
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
bahut samyik hasy likha hai.....
जवाब देंहटाएंnice
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