फुलमतिया जी रोमांटिक मूड में खदेरन से, “मैं तुम्हारी ज़िन्दगी की किताब हूं!”
खदेरन अनमनेपन से, “यही तो तकलीफ़ है, डायरी होती तो हर साल बदल लेता।”
फुलमतिया जी रोमांटिक मूड में खदेरन से, “मैं तुम्हारी ज़िन्दगी की किताब हूं!”
खदेरन अनमनेपन से, “यही तो तकलीफ़ है, डायरी होती तो हर साल बदल लेता।”
फांसी से पहले प्रथा के अनुसार अंतिम इच्छा पूछी जाती है।
उसे फांसी दिया जाने वाला था।
उससे उसकी अंतिम इच्छा पूछा गया।
उसने कहा,
“फांसी देते वक़्त मेरा सर नीचे और पैर ऊपर कर दिया जाए।”
अगर बासंती की मौसी
ठाकुर को राखी बांधे
तो बासंती और ठाकुर में
क्या रिश्ता हुआ।
….
…..
?
?
?
कुछ समझ में आया।
खदेरन का बेटा है भगावन। आप भूले तो नहीं ही होंगे।
परीक्षा का परिणाम कल आ गया था। आज वह स्कूल जा रहा था। रास्ते में उसका दोस्त भोलू मिल गया। कल जो रिजल्ट आया था उसमें भोलू की कोई अच्छी स्थिति नहीं थी।
अब दोनों दोस्त की बात सुनिए …
“अरे भोलू इधर आ .. अकेले-अकेले क्यूं जा रहा है?”
“नहीं यार! बस ऐसे ही .. कोई खास बात नहीं है।”
“अच्छा यार! अरे यार भोलू, तुम्हारा तो रिजल्ट खराब आ गया।”
“तो क्या हुआ? मैं कोई डरता हूं क्या किसी से ..”
“नहीं वो तुम्हारे पिता पुलिस में हैं ना … तो ’… ”
“तो … तो क्या …”
“पुलिस वाले बड़े सख़्त होते हैं ना।”
“हां सो तो है … पर मैंने सब मैनेज कर लिया ..”
“अच्छा .. ! वो कैसे .. क्या हुआ … बता ना ..?”
“बताता हूं, सुनो … जब मैं घर पहुंचा तो पिता जी, अभी अभी थाने से आए थे और पुलिसिया वर्दी में ही थे। उन्होंने मुझसे कुछ पूछा नहीं, बल्कि बताया, उन्हें पहले से ही मालूम था, बोले … ‘बेटा, तुम्हारा रिजल्ट खराब आया है। आज से तुम्हारा खेलना, टीवी देखना बन्द। …”
भगावन ने उत्सुकता से पूछा, “अच्छा … फिर …”
भोलू ने बताया, “फिर क्या मैं भी तो पुलिस इंसपेक्टर का ही बेटा हूं ना, पुलिस वालों को मैनेज करने के सारे फॉर्मूले जानता हूं, मैंने कहा, ये लो, … पचास रुपए पकड़ो और इस बात को यहीं रफ़ा-दफ़ा करो …!”
आपने भी ग़ौर किया होगा कि खदेरन इन दिनों कुछ चालाक़-सा होता जा रहा था। उसकी इस बढ़ती बुद्धिमाने से लपेटन, झूलन और खखोरन को ईर्ष्या होने लगी। दोनों ने फ़र्ज़ी रूप धरा और एक-एक कर खदेरन के घर पहुंचे उसका इंस्पेक्शन करने।
सबसे पहले गया लपेटन। देखा खदेरन कुत्ते को कुछ खिला रहा था। उसने कहा, “तुम कुत्ते को क्या खिलाते हो?”
खदेरन ने बताया, “जी, ब्रेड, बिस्कुट, इत्यादि ..”
लपेटन बोला, “मैं एनिमल प्रोटेक्शन असोसिएशन से हूं। तुम्हें इसे अच्छी डाइट देनी चाहिए। तुम पर जुर्माना लगाया जाता।”
… और वह जुर्माना लेकर चला गया।
कुछ दिनों के बाद झूलन भेष बदल कर पहुंचा। उसने भी वही प्रश्न दुहराया, “तुम कुत्ते को क्या खिलाते हो?”
खदेरन ने बताया, “जी मैं इसे मटन, चिकन आदि खिलाता हूं।”
झूलन ने कहा, “मैं यूएनओ का एक इंस्पेक्टर हूं। तुम्हें यह बात समझनी चाहिए कि जहां एक ओर लोग भूख से मर रहे हैं, तुम कुत्ते को ये सब खिलाते हो। तुम पर जुर्माना लगाया जाता है।”
… और वह जुर्माना लेकर चला गया।
कुछ दिनों के बाद खखोरन भेष बदल कर आया और उसने भी वही प्रश्न पूछा, “तुम कुत्ते को क्या खिलाते हो?”
खदेरन ने कहा, “जी, मैं इसे 100 रुपए दे देता हूं। अब इसकी मर्ज़ी, जो चाहे खा ले!”
“बेटा! अब वक़्त आ गया है तुम्हें सही रास्ता चुनना चाहिए। ये शराब, सिगरेट, लड़कियां, ये सब तुम्हारे दुश्मन हैं। इनसे नाता तोड़ लो।”
“पापा! आपने ही तो सिखाया था, जो अपने दुश्मनों को पीठ दिखाते हैं, वे मर्द नहीं होते।”
उसे प्रचार पाने की बड़ी तमन्ना थी। उसने चिन्तन मनन किया कि क्या किया जाए।
उसे उपाय सूझ गया।
उसने घोषणा की कि वह कुतुब मीनार को सिर पर उठाकर मुंबई ले जाएगा।
बात चारों ओर फैल गई। मीडिया वाले भी आ गए। वह चर्चा में था। नियत दिन और नियत समय भी आ गया। लोगों ने कहा अब शुरु हो जाओ।
उसने कहा, “जी अभी शुरु कर देता हूं, ज़रा इसे उठा कर मेरे सिर पर रखने में कोई मेरी सहायता तो करो।”