एक दिन फाटक बाबू और खदेरन टीवी पर सिनेमा देख रहे थे। फ़िल्म का अंत देख कर खदेरन बहुत भावुक हो गया। उसकी आंख से टप-टप आंसू गिरने लगे।
फाटक बाबू बोले, “अरे खदेरन रोता क्यों है? यह कोई असल की ज़िन्दगी थोड़े है। यह तो फ़िल्म है।”
खदेरन ने आंसू पोछते हुए कहा, “अच्छा। फाटक बाबू! फ़िल्मी ज़िन्दगी और असल की ज़िन्दगी में क्या फ़र्क़ होता है?”
फाटक बाबू ने बताया, “फ़िल्मों में बहुत मुश्किलों के बाद शादी होती है, और असली ज़िन्दगी में तो शादी के बाद मुश्किलें पता चलती हैं।”
फ़िल्मी परदे पर शादी के बाद " The End" का बोर्ड लग जाता है परन्तु वास्तविक जिंदगी में शादी के बाद " End of the Life " होता है. क्यों खरेदन ?
जवाब देंहटाएंSahi hai...
जवाब देंहटाएंबात तो सही है :)
जवाब देंहटाएंसच में बहुत नाइन्साफी है।
जवाब देंहटाएंह्म्म्म !
जवाब देंहटाएंLAJWAAB HAI JI
जवाब देंहटाएंAnubhav bolta hai
जवाब देंहटाएंअनुभवी लोगों की बात ही अनोखी है!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना,...अच्छी प्रस्तुती,
जवाब देंहटाएंक्रिसमस की बहुत२ शुभकामनाए.....
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ऐसे सच्चे चुकुले पर टिप्पणी कठिन है. आपको और परिवारजनों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंवाह!!!चुटुकुला पर सत्य!!!
जवाब देंहटाएंआपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!!!
जवाब देंहटाएंआपको नव वर्ष की बधाई.....अपन क्या कहें.....क्योकि दूसरों पर आई मुसीबत पर हंसना नहीं चाहिए.....
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