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शनिवार, 2 जनवरी 2010

नर्क में भी जगह नहीं मिली

नर्क में भी जगह नहीं मिली

नया साल मंगलमय हो ... !

2010 हंसी और हंसी-ख़ुशी से भरा रहे !!!!

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एक कवि जी का इंतकाल हो गया। इष्ट मित्रों ने, उनकी शवयात्रा निकले उसके पहले उनके सम्मान में एक लघु कवि गोष्ठी का आयोजन कर डाला। अभी उनके सम्मान में रचानाओं का वाचन हो ही रहा था कि कवि जी के शव में हलचल हुई और कवि जी उठ कर खड़े हो गए। मित्र भौचक्के। ये क्या हुआ। कैसे हुआ। क्यों हुआ।

कविजी बोले, मैं मर तो गया था। जब ऊपर पहुंचा तो पहले स्वर्ग गया। वहां के केयरटेकर ने कहा नहीं , यहां नहीं। यहां नहीं। यहां आपकी बुकिंग नहीं है। मैंने पूछा क्यों। तो उस केयरटेकर ने जवाब दिया आपने अपनी जिन्दगी में ऐसा कुछ नहीं रचा कि आपको स्वर्ग नसीब हो। आपको नर्क में जाना पड़ेगा। मैं मरता क्या न करता। नर्क पहुंचा। वहां तरह-तरह के लोग थे। चित्रगुप्त जी भी वहां निरीक्षण दौड़े पर पहुंचे हुए थे। उन्होंने मुझसे पूछा, भाई तुम कौन हो। क्या करते हो। मैंने उन्हें बताया, जी मैं कवि हूं। कविता सुनाता हूं। इस पर वहां जितने लोग थे चिल्लाने लगे नहीं, नहीं। हम पहले से ही नर्क में हैं। अब इसकी कविताएं नहीं सुन सकते। चित्रगुप्त जी का फरमान हुआ -- तुम नीचे जाओ। ... ... और मैं वापस आ गया।

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अगर पसंद आया तो ठहाका लगाइगा

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14 टिप्‍पणियां:

  1. Ha ha ha ha .subah ki Shuruwat hasi ke saath ho to sara din aacha gujarta hai. Dhanyawad..

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  2. .......कहीं जगह न मिली मेरे आशियाने को ........
    बहुत खूब !

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  3. बहुत खूब !
    बहुत ही सुंदर रचना है।
    नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ ब्लाग जगत में द्वीपांतर परिवार आपका स्वागत करता है।

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  4. बेहतरीन। लाजवाब। आपको नए साल की मुबारकबाद।

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  5. @ उड़न तश्‍तरी

    हालात नहीं
    नर्क से भी
    पड़ी लात।
    हां लात !!!

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  6. बेहतरीन। लाजवाब। आपको नए साल की मुबारकबाद।

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