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बुधवार, 31 अगस्त 2011

किताब और डायरी

फुलमतिया जी रोमांटिक मूड में खदेरन से, “मैं तुम्हारी ज़िन्दगी की किताब हूं!”

खदेरन अनमनेपन से, “यही तो तकलीफ़ है, डायरी होती तो हर साल बदल लेता।”

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपका ब्लॉग बहुत अच्छा है, और चुटकुला भी, बधाई स्वीकारें !

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  2. वाह, अब डायरी छोड़ किताब लिख रहे हैं।

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  3. चित्र खदेरन लायक नहीं लग पाया है। किताब हो डायरी, सबसे अच्छा है कि लिखने-पढ़ने का काम ही बन्द कर दें और इन सब से मुक्त।

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  4. एक साल तक झेलना!!!!! ओ माई गोड!!किताब तो घंटे भर में पढकर आलमारी में सजा डी जाती है.. कभी कभार रेफरेंस के लिए निकाल लीजिए!!

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  5. ऐसे उत्तर से खदेरन के गाल पर पुस्तक का एक पन्ना छप गया होगा....तड़ाक्.

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  6. ऐसी हलकी फुलकी नोक झोक रिश्तो में मधुरता बनाये रखती है.
    यदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो कृपया मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
    अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html

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  7. फुलमतिया और खदेरन नाम प्रेमचंद की कहानियों के पात्रों के जैसे नाम नहीं है ? क्या वे " किताब " और " डायरी " के अर्थ समझते होंगे ?

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