खदेरन को बाबा की कृपा चाहिए थी।
वह उनके दरबार में पहुंचा। उनके चरणों पर उसने अपनी जन्म-कुंडली धर दी।
बाबा ने बोलना शुरू कर दिया, “तेरा नाम खदेरन है?”
“जी।”
“तेरी पत्नी का नाम फुलमतिया जी है?”
“जी!”
“तेरा एक लड़का है जिसका नाम भगावन है?”
“जी-जी!!”
“तूने कल बीस किलो गेहूं ख़रीदा है?”
“जी-जी-जी!!! आप तो अंतर्यामी हैं बाबा! कृपा कीजिए इस दास पर।”
“बेवकूफ़! अगली बार कुंडली लेकर आना, राशनकार्ड नहीं।”
बेचारा क्या करे -काला आखर भैंस बराबर !
जवाब देंहटाएंहा हा!! खदेरन खदेरन ही रह गया!!
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा ..
जवाब देंहटाएंमज़ेदार!
हा हा हा..
जवाब देंहटाएंवाह वाह खदेरन ...क्या बात है ..हा हा हा
जवाब देंहटाएं:):) बाबा को तो कृपा फिर भी करनी चाहिए थी
जवाब देंहटाएंहाहहाहहा बढिया
जवाब देंहटाएंha ha ha ha
जवाब देंहटाएंमज़ेदार रहा.
जवाब देंहटाएं:-)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह यह भी खूब रही ... जय हो बाबा की ...
जवाब देंहटाएंआपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है एक आतंकवाद ऐसा भी - अनचाहे संदेशों का ... - ब्लॉग बुलेटिन के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
हा हा हा. हा हा हा. हा हा हा. हा हा हा.
जवाब देंहटाएंha ha ha ha
जवाब देंहटाएंvery gud, aj kal ke panit bhi aise hain aur jajmaan bhi