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सोमवार, 30 नवंबर 2009
कवयित्री -1
एक बार मैं ट्रेन से आ रही थी। मन्द मन्द अपनी कविता गुनगुना रही थी।
सामने बैठे सज्जन ने मुझसे पूछा, “बहन आप कौन हैं, क्या करती हैं”
मैंने कहा, “कवयित्री हूं और कविता सुनाती हूं।“
शिष्टाचारवश मैंने भी पूछ ही दिया, “और श्रीमानजी आप कौन हैं और क्या करते हैं”
सज्जन बोले “बहरा हूं और नहीं सुनता हूं।“
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अगर पसंद आया तो ठहाके लगाइएगा
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रविवार, 29 नवंबर 2009
नोंक-झोंक -4
कभी कभी लेने के देने पड़ जाते हैं। कुछ अच्छा करने जाओ तो मामला और बिगड़ जाता है।
उस दिन खाते हुए श्रीमान ने कह दिया आज खाना खराब बना है।
बस श्रीमती जी शुरु हो गईं। तुम्हें तो अब फाइव स्टार का ही खान अच्छा लगेगा। मेरे हाथ का बना तो कुछ भी अच्छा नहीं होता। आदि-आदि।
श्रीमान ने सोचा इस झगड़ा झंझट से तो अच्छा है कि खाने की तारीफ ही कर दिया करूं।
दूसरे दिन जो भी मिला खाने के बाद श्रीमान ने उसकी तारीफ के पुल बांध दिए।
अब श्रीमती जी फिर शुरु हो गईं। हां-हां आज का तुम्हें क्यों नहीं अच्छा लगेगा। तुम्हें तो मेरे हाथ का खाना खराब लगता है। आज मेरी तबियत खराब थी तो पड़ोसन से मांग कर लाई। यह तुम्हें तो अच्छा लगेगा ही।
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अगर पसंद आया तो ठहाके लगाइएगा
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शनिवार, 28 नवंबर 2009
फाटक बाबू -3
एक रात फाटक बाबू शराब के नशे में सड़क पर पैदल जा रहे थे। उनका एक पैर फूटपाथ पर था तो दूसरा सड़क पर।
तभी थानेदार की नज़र उन पर पड़ी। पीछे से थानेदार ने एक धौल जमाते हुए कहा, “क्यों बे कितनी पी रखी है तूने?”
फाटक बाबू बोले, “याद दिलाने के लिए शुक्रिया कि मैंने पी रखी है। मैं तो तब से यही सोच रहा था कि अचानक मैं लंगड़ा क्यों हो गया हूँ?”
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शुक्रवार, 27 नवंबर 2009
मुआवज़े का फार्म
एक उद्योगपति, एक व्यापारी, एक बैंक मैनेजर और एक सरकारी कर्मचारी गहरे दोस्त थे। एक दिन चारो अपनी-अपनी बिल्ली लेकर एक जगह इकट्ठे हुए और लगे उनकी ख़ूबियों का बखान करने।
फिर उद्योगपति ने अपनी बिल्ली को इशारा किया। वह दौड़ी और कुछ देर में मिठाई का डिब्बा लाकर मेज पर रख दिया।
व्यापारी के इशारे पर उसकी बिल्ली दूध से भरा गिलास ले आई और मेज पर रख दिया।
बैंक मैनेजर का इशारा पाकर उसकी बिल्ली एक प्लेट में केक सजाकर ले आयी और टेबल पर रख दिया।
बिल्लियों की इस भाग दौड़ के दौरान सरकारी कर्मचारी की बिल्ली एक कुरसी पर बैठी सोती रही। सरकारी कर्मचारी ने ज़रा ऊंची आवाज़ में कहा, “लंच टाइम।“ यह सुनते ही उसकी बिल्ली ने आंखें खोली, कान खड़े किए और टेबल पर रखी चीज़ों पर टूट पड़ी। सारा सामान चट कर जाने के बाद वह बाक़ी तीनों बिल्लियों के साथ लड़ने लगी। फिर घायल होने का दावा करते हुए मुआवज़े का फार्म भरा और Sick Leave लेकर घर चली गई।
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गुरुवार, 26 नवंबर 2009
नोंक-झोंक-3
नोंक-झोंक-3
एक दिन श्रीमती जी ने खींजते हुए कहा, “घर में जवान बेटी बैठी हुई है और तुम्हें कोई चिंता ही नहीं है।”
“क्यों तुम्हें क्यों ऐसा लगता है कि मुझे कोई चिंता नहीं है। पर मैं क्या करूं?”
“कुछ भाग-दौड़ क्यों नही करते?”
“कोई ढंग का लड़का मिले तब तो।“
“सोचो अगर मेरे पिताजी भी ढंग के लड़के कर इंतज़ार करते तो तुम्हारा क्या होता?”
अगर पसंद आया तो ठहाके लगाइएगा
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बुधवार, 25 नवंबर 2009
परिभाषा -2
वह शख्स जो सीधी बात को भी
अगर पसंद आया तो ठहाके लगाइएगा
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मंगलवार, 24 नवंबर 2009
तीसरा बच्चा...
पादरी : 'पीटर'
फिर उसके घर दुसरे लड़के ने जन्म लिया। फिर वह पादरी के पास पहुँच कर उसने दूसरे बच्चे के नामकरण के लिए पूछा।
पादरी : "ओह ! तो यह तुम्हारी दूसरी गलती है। और पीटर के बाद आया है। तो इसका नाम रख दो, रिपीटर।"फिर कुछ दिन बाद लुगाई ने तीसरे को जन्म दिया। आदमी फिर भागा पादरी के पास और तीसरे बच्चे के नामकरण का अनुरोध किया, "फादर ! तीसरे बच्चे का नाम क्या रखें ?"
पादरी : "चांग सुंग''
आदमी : "चांग सुंग ! ये कैसा नाम है ?"
पादरी : "चाइनीज"
आदमी : "पर फादर ! हम लोग तो.....!"
पादरी : "कोई नही। दुनिया में हर तीसरा बच्चा चाइनीज ही होता है। "
अगर पसंद आया तो दिल खोलकर ठहाका लगाइएगा।
सोमवार, 23 नवंबर 2009
मेहमाननवाज़ी
मेहमाननवाज़ी
“चाय पियेंगे या शर्बत?”
“शर्बत ही पी लूंगा।“
“शीशे के गिलास में लेंगे या स्टील के गिलास में?”
“शीशे के गिलास में ही दे दीजिए।“
“जी, अच्छा, फूलदार गिलास में लेंगे या सादे गिलास में?”
“ऊँ, कोई भी चलेगा।“
“जी, गिलास छोटा हो या बड़ा?”
दुखी होकर, “भाड़ में जाए तुम्हाराशर्बत और गिलास। मैं चला।“
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अगर पसंद आया तो ठहाके लगाइएगा
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रविवार, 22 नवंबर 2009
नोंक-झोंक-2
नोंक-झोंक-2
नोंक-झोंक थोड़ी तीखी हो गई। गुस्से से श्रीमान ने श्रीमती जी को एक जोरदार तमाचा जड़ दिया। श्रीमती जी की आंखों से आसुओं का सैलाब फूट पड़ा। उनका रोते-रोते बुरा हाल हो गया। यह देख श्रीमान को दया आ गई। श्रीमान ने श्रीमती जी से बड़े प्यार से कहा, “प्रिये, लोग हाथ उसी पर उठता है, जिसे वह बेइंतहा प्यार करते हैं।”
यह सुनते ही श्रीमती जी ने आंसू पोछ लिए। श्रीमान जी के पास आईं। बड़े उत्साह से उनके गालों पर दो तमाचे जड़ दिए। और उतने ही प्यार से बोलीं, “आप क्या समझते हैं, कि मैं आपको कम प्यार करती हूं। जी मैं तो आपको आपसे दुगुना प्यार करती हूं।”
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शनिवार, 21 नवंबर 2009
फाटक बाबू-2
फाटक बाबू-2
उस दिन फाटक बाबू अदालत में हाजिर थे। सरकाहरी गवाह बनकर। बचाव पक्ष के वकील ने उनसे प्रश्न पूछा।
वे लगे विस्तार से जवाब देने। वकील ने उनसे काहा, “आप सिर्फ हां या ना में जवाब दीजिए। इतना डिटेल में मत समझाइए। ”
इस पर फाटक बाबू बोले - “हर प्रश्न का उत्तर हां या ना में नहीं हो सकता। ”
यह सुन सरकारी वकील रूष्ट हो गए। बोले - “आप ऐसा कैसे कह सकते हैं ? क्यों नहीं हो सकता है ?”
तो फाटक बाबू ने चैलेंज किया, “क्या आप मेरे प्रश्न का उत्तर हां या ना में दे सकते हैं?”
वकील साहब ने चैलेंज स्वीकार किया, “बिल्कुल दे सकता हूँ।”
फाटक बाबू ने पूछा, “तो बताइए, क्या आप आज भी अपनी पत्नी से पिट कर आ रहें हैं ?”
वकील साहब क्या उत्तर दें – हां या नहीं .....................
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शुक्रवार, 20 नवंबर 2009
फाटक बाबू-1
एक पार्टी में एक अमेरिकन फाटक बाबू से, "आप की कमीज़ पर कॉफी गिर गई है, साफ कर लीजिए।"
फाटक बाबू, "तुम अमेरिकन हमेशा दूसरों के फटे में टांग अड़ाने से बाज़ नहीं आओंगे। तुम्हारी सिगरेट से तुम्हारा कोट जल रहा है पर मैंने तो कुछ नहीं कहा।"
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गुरुवार, 19 नवंबर 2009
नोंक-झोंक-1
खाना देखकर श्रीमान जी ने मुंह बिचका दिया और कहा, “फिर वही बैगन की सब्जी। तुम्हें शायद मालूम नहीं कि ज़्यादा बैगन खाने से आदमी अगले जन्म में गधा बनता है।”
श्रीमतीजी बोलीं, "जो बनाती हूँ चुपचाप खा लिया करो। यह बात तो तुम्हें पिछले जनम में सोचनी चाहिए थी।"
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बुधवार, 18 नवंबर 2009
परिभाषा-1
पड़ोसी :
वह महानुभाव
जो आपके मामले को आपसे ज़्यादा समझता हो।
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अगर पसंद आया तो दिल खोलकर ठहाका लगाइएगा।
मंगलवार, 17 नवंबर 2009
चौके-छक्के – 1
मित्रों,
ब्लॉग की दुनियां में मैं भी आ गई। सिर्फ एक उद्देश्य से कि लोगों के तनाव भरे जीवन में एक-आध पल हंसी के बांट सकूं। इसके लिए जो भी मैं पेश करूंगी वे मेरे स्व रचित हों इसका दावा मैं नहीं कर सकती। मुझे जहां से भी हास्यफुहार मिलेगा, मैं पेश करती रहूंगी।
चौके-छक्के – 1
मियां-बीवी लौट रहे थे होटल से खाकर खाना,
तबियत बड़ी रंगीन थी मौसम भी था सुहाना।
हस्बैंड मचल रहा था सुनने को फिल्मी गाना।
बीवी ने हाथों में हाथें डालकर छेड़ा था ये तराना -- के
....... “भैया मोरे राखी के बंधन को निभाना
भैया मोरे छोटी बहन को न भुलाना”
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अगर पसंद आया तो दिल खोलकर ठहाका लगाइएगा।
सोमवार, 16 नवंबर 2009
चौके-छक्के – 1
मित्रों,
ब्लॉग की दुनियां में मैं भी आ गई। सिर्फ एक उद्देश्य से कि लोगों के तनाव भरे जीवन में एक-आध पल हंसी के बांट सकूं। इसके लिए जो भी मैं पेश करूंगी वे मेरे स्व रचित हों इसका दावा मैं नहीं कर सकती। मुझे जहां से भी हास्यफुहार मिलेगा, मैं पेश करती रहूंगी।
आज मेरे बड़े बेटे अभिषेक का जन्म दिन है। सुबह से ही इस उधेर-बुन में थी कि उसे क्या तोहफा दूं। “हास्यफुहार” के रूप मे ब्लॉग का तोहफा उसे ज़रूर पसंद आएगा। तो आप नीचे के आज के हास्यफुहार का आनंद लीजिए, मैं उसे फोन लगाती हूं। हां अगर पसंद आया तो दिल खोलकर ठहाका लगाना नहीं भूलिएगा।
चौके-छक्के – 1
मियां-बीवी लौट रहे थे
होटल से खाकर खाना,
तबियत बड़ी रंगीन थी
मौसम भी था सुहाना।
हस्बैंड मचल रहा था
सुनने को फिल्मी गाना।
बीवी ने हाथों में हाथें
डालकर छेड़ा था ये तराना --
के .......
“भैया मोरे राखी के बंधन को निभाना
भैया मोरे छोटी बहन को न भुलाना”
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