एक भिखारी स्कूल जाते भगावन से, “एक रुपए का सवाल है।”
भगावन ने जवाब दिया, “पीछे सायकल पर गणित के टीचर आ रहे हैं। उन से पूछ लेना।”
एक भिखारी स्कूल जाते भगावन से, “एक रुपए का सवाल है।”
भगावन ने जवाब दिया, “पीछे सायकल पर गणित के टीचर आ रहे हैं। उन से पूछ लेना।”
भगावन ने खदेरन से प्रश्न किया, “पापा, एक आदमी एक से अधिक शादी क्यों नहीं कर सकता?”
खदेरन ने जवाब दिया, “बेटा भगावन बड़े होकर ख़ुद समझ जाओगे कि जो अपनी रक्षा ख़ुद नहीं करते, उन्हें क़ानून बचाता है।”
फुलमतिया जी, आपको तो मालूम ही है, कल उनका व्रत पूरा हो गया न बोलने का।
अब समय आ गया था उनके मुंह खोलने का।
आज सुबह-सुबह उनके बोल फूटे, खदेरन पर फ़िज़ूलख़र्ची का आरोप लगाते हुए बोलीं, “तुम बहुत से पैसे बेकार में ख़र्च करते हो।”
खदेरन ने पूछा, “आप यह कैसे कह सकती हैं?”
फुलमतिया जी ने बताया, “तुमने वह आग बुझाने वाला यंत्र ख़रीदा था, वह अभी तक एक बार भी काम नहीं आया!”
खदेरन उस दिन बड़ा उदास था। बालकॉनी में बैठा आसमान की ओर ताके जा रहा था।
फाटक बाबू अपनी लॉन में चहलकदमी कर रहे थे। अचानक उनकी नज़र खदेरन पर पड़ी। खदेरन की उदासी उनसे छुप न सकी। वो उसके पास गए। पूछ बैठे, “खदेरन! बहुत उदास-उदास दिख रहे हो। क्या बात है?”
खदेरन ने कहा, “क्या बताऊं फाटक बाबू? फुलमतिया जी (पत्नी) से झगड़ा हो गया था। … और उन्होंने क़सम खाई थी कि वो पूरे एक महीने तक मुझसे बात नहीं करेंगी।”
फाटक बाबू बोले, “तो तुमको फुलमतिया जी का चुप रहना बुरा लग रहा है क्या?”
खदेरन ने बताया, “नहीं फाटक बाबू, यह बात नहीं है। बात यह है कि आज एक महीना पूरा हो रहा है!”
गणतंत्र दिवस के दिन दफ़्तरों में छुट्टी होती है। सड़कें ख़ाली होती हैं। फुलमतिया जी ने खदेरन से कहा, “आज हमें लॉन्ग ड्राइव पर ले चलो।”
खदेरन राज़ी हो गया। दोनों निकले। सड़कें ख़ाली थी। खदेरन बहुत तेज़ी से गाड़ी चला रहा था। सामने से कोई गाड़ी आती और खदेरन की गाड़ी उस गाड़ी के क़रीब से सर्र से निकलती तो फुलमतिया जी को डर लगता। उनसे रहा नहीं गया तो बोलीं, “जब तुम इतनी तेज़ कार चलाते हो और कोई गाड़ी क़रीब से गुज़रती है तो मुझे बहुत डर लगता है।”
खदेरन लापरवाही से बोला, “डरती क्यों हो? तुम भी मेरी तरह आंखें बंद कर लिया करो।”
उस दिन किसी कारण से भगावन स्कूल नहीं जा पया। तो उसकी मम्मी फुलमतिया जी ने कहा, “रिझावन के यहां जाकर आज पढाए गए सारे नोट्स ले आ, ता कि पता तो चले आज क्या पढाई हुई है?”
मम्मी का लाड़ला भगावन रिझावन के घर नोट्स लेने पहुंचा। काम करते-करते बहुत देर हो गई तो रिझावन बोला, “बहुत रात हो गई है। तू मेरे घर ही रुक जा।”
भगावन को यह प्रस्ताव पसंद आया। बोला, “ठीक है, मैं घर से अपना नाइटसूट लेकर आता हूं।”
खदेरन की तबियत ख़राब थी। फाटक बाबू को मालूम हुआ तो गए उसे देखने। पहुंचते ही फाटक बाबू ने पूछा, “अरे खदेरन! तू तो डॉक्टर के पास जाने वाला था, क्या हुआ?”
खदेरन धीमे और बीमार स्वर में बोला, “फाटक बाबू कल जाऊंगा दिखाने!”
फाटक बाबू को हैरानी हुई। पूछे, “क्यों?”
खदेरन ने बताया, “आज थोड़ी तबियत ख़राब है ना!”
एक दिन भगावन साधुओं की टोली में पहुंच गया। साधु ध्यानमग्न बैठे थे। वह कुछ बोलता उससे पहले एक साधु की नज़र उस पर पड़ी, तो उसने पूछा, “क्या है बच्चा, क्यों आए हो?”
भगावन बोला, “मैं साधु बनना चाहता हूं।”
उस साधु ने पूछा, “ऐसा क्या हुआ जो तुम इस उम्र में साधु बनने की ठान बैठे हो।”
भगावन बोला, “मेरे पिताजी ने कहा है कि वे मुझ नालायक़ को अपनी संपत्ति में से फूटी कौड़ी भी नहीं देंगे, अपनी सारी संपत्ति साधुओं को दान कर देंगे।”
हर साल 21 जनवरी को अमरीका में ‘नेशनल हगिंग डे’ मनाया जाता है। मिलने-जुलने व गले लगने के इस दिन की शुरुआत 25 साल पहले हुई थी।
इस दिन के उपलक्ष्य पर फुलमतिया जी ने खदेरन से एक प्रश्न पूछ दिया।
“आरेन्ज्ड मैरिज और लव मैरिज में क्या अंतर है?”
खदेरन ने बहुत सोच विचार कर जवाब दिया,
“अरेन्ज्ड मैरिज – जब आप कहीं से, किसी पथ से गुज़र रहे होते हैं, और दुर्भाग्यवश कोई सांप आपको काट लेता है।
लव मरिज – यह तो किसी सांप के सामने नाचने के समान है! और वह भी यह गाते हुए कि ‘काटले! काटले!! काटले!!!”
अब आप बताइए कि क्या खदेरन के घर में इस गले लगो दिवस पर क्या हुआ होगा?
फाटक बाबू ने सपना देखा। देश के वो बहुत धनवान व्यक्ति हो गए हैं। उनका महलनुमा विशाल आवास है। खदेरन उनका मुख्य सेवक है। महल के सामने बड़ा सा लॉन है। उस प्रांगण में तीन स्वीमिंग पूल हैं। दो में पानी भरा है, तीसरा ख़ाली है।
खदेरन पूछता है, “फाटक महाराज! ये तीन-तीन स्वीमिंग पूल आपने बनवा लिया, चलिए ठीक है! पर इसमें से एक में आपने ठंडा पानी डलवाया, दूसरे में गर्म पानी डलवाया और तीसरे को ख़ाली रखा। इसका क्या मतलब है?”
फाटक बाबू ने समझाया, “खदेरन! ठंडा वाला स्वीमिंग पूल गर्मी में प्रयोग करने के लिए, गर्म पानी वाला जाड़े में प्रयोग करने के लिए और … तीसरा ख़ाली वाला …. खदेरन! …. कभी-कभी नहाने का दिल नहीं करता ना …. इसलिए!!”
खंजन देवी ने फोन खटकाया
और अपनी परेशानी डॉक्टर को बताया।
“आपसे एक निवेदन है
मेरी परेशानी का निदान करें,
वजन घटाना है,
ज़रा जल्दी से उसका समाधान करें।
इस नए वर्ष पर मेरे पति फाटक बाबू ने
एक उत्तम उपहार दिया तो सही
पर समस्या यह है कि मैं
उसमें घुस नहीं पा रही।”
समस्या सुनकर डॉक्टर ने कहा,
“कल आप यहां आ जाएं
और आकर अपनी समस्या के
ईलाज का नुस्ख़ा ले जाएं।
मेरा दावा है इसके प्रयोग करते ही
आप अपना वजन कमा सकेंगी
और पति के द्वारा दिए गए ड्रेस में
आसानी से समा सकेंगी।”
सुनकर डॉक्टर की बात
खंजन देवी ने फ़रमाया,
“कमाल है, ड्रेस की बात
आपके मन में कैसे समाया।
आप जो सोच रहे हैं
वह फ़ालतू है, निराधार है!
जिसमें मैं समा नहीं पा रही,
वह तो नई, चमचमाती कार है!!”
फुलमतिया जी इन दिनों कुकरी क्लास ज्वायन कर लीं हैं और उनके प्रयोग का केन्द्र बन गया खदेरन। देखते-देखते संक्रांति आ गया। हालाकि यह लाई, तिलवा के अलावा चूरा-दही और खिचड़ी खाने का दिन होता है, पर खदेरन तो खदेरन है। पूछ बैठा, “आज खाने में क्या बनाएंगी?”
फुलमतिया जी: जो आप कहो!
खदेरन : दाल चावल बना लीजिए।
फुलमतिया जी : अभी कल ही तो खिलाई थी।
खदेरन : तो सब्जी रोटी बना लीजिए।
फुलमतिया जी : बच्चे नहीं खाएंगे।
खदेरन : तो छोले पूड़ी बना लीजिए।
फुलमतिया जी : मुझे हेवी-हेवी लगता है।
खदेरन : एग-भुर्जी बना लीजिए।
फुलमतिया जी : आज संक्रांति है, नॉन-वेज नहीं बनेगा।
खदेरन : पराठे?
फुलमतिया जी : आज के दिन पराठे कौन खाता है?
खदेरन : होटल से मंगवा लेते हैं?
फुलमतिया जी : आज के दिन होटल का नहीं खाना चाहिए।
खदेरन : कढी-चावल?
फुलमतिया जी : दही नहीं है।
खदेरन : इडली-सांभर?
फुलमतिया जी : उसमें समय लगेगा, पहले बोलना चाहिए था ना।
खदेरन : मैगी ही बना लीजिए, उसमें समय नहीं लगेगा।
फुलमतिया जी : वो कोई मील थोड़े है? पेट नहीं भरता।
खदेरन : फिर अब क्या बनाएंगी?
फुलमतिया जी : वो, जो आप कहो!!!
खदेरन का बेटा भगावन स्कूल में व्याकरण की क्लास में था। शिक्षक ने व्याकरण के नियम समझाने के बाद प्रश्न पूछा, “अच्छा ये बताओ कि स्वर और व्यंजन में क्या अंतर होता है?”
किसी के बोलने के पहले भगावन ने समझाया, ‘सर जी! स्वर मुंह से बाहर की ओर निकलता है और व्यंजन बाहर से मुंह के अंदर जाता है।”
बात उस रात की है जिस दिन खदेरन-फुलमतिया दम्पत्ति पहली बार मोबाइल फोन खरीद कर लाए थे।
नए फोन के घर में आने, और उससे फोन-वोन, गाना-वाना आदि के इनिशियल एक्साइटमेंट (शुरुआती उत्साह) के बाद दोनों सोने गए।
दोनों में से किसी ने सपना देखा, अब ये सपना ही तो हो सकता है, क्योंकि इतना बोलने का साहस और खदेरन से और ऐसे वार्तालाप की उम्मीद उनके घर में …..
फुलमतिया जी खदेरन के कंधे पर हाथ डाल कर बड़े प्यार से, “खदेरू डार्लिंग! कितना अच्छा होता कि तुम मैसेज होते, और … मैं तुम्हें सेव करके रखती …. और जब चाहे … तब पढती!!”
खदेरन इठलाते, शर्माते, सकुचाते, फुलमतिया जी से, “फुल्लू जान! केवल सेव करके ही रखती, … ऊं, .. .. या, किसी सहेली को भी फॉरवार्ड करती!”