खदेरन उस दिन बड़ा उदास था। बालकॉनी में बैठा आसमान की ओर ताके जा रहा था।
फाटक बाबू अपनी लॉन में चहलकदमी कर रहे थे। अचानक उनकी नज़र खदेरन पर पड़ी। खदेरन की उदासी उनसे छुप न सकी। वो उसके पास गए। पूछ बैठे, “खदेरन! बहुत उदास-उदास दिख रहे हो। क्या बात है?”
खदेरन ने कहा, “क्या बताऊं फाटक बाबू? फुलमतिया जी (पत्नी) से झगड़ा हो गया था। … और उन्होंने क़सम खाई थी कि वो पूरे एक महीने तक मुझसे बात नहीं करेंगी।”
फाटक बाबू बोले, “तो तुमको फुलमतिया जी का चुप रहना बुरा लग रहा है क्या?”
खदेरन ने बताया, “नहीं फाटक बाबू, यह बात नहीं है। बात यह है कि आज एक महीना पूरा हो रहा है!”
ha ha ha......majedaar
जवाब देंहटाएंहा हा हा । बहुत खूब। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंउदासी का कारण जायज है। फाटक बाबू के पास भी कोई तोड़ नहीं होगा, हैना!!!
जवाब देंहटाएंसमय हो तो मेरे ब्लॉग पर भी आएं।
mydunali.blogspot.com
बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंहा हा हा……………सही है।
जवाब देंहटाएंहा हा मजेदार हंस लिए ...
जवाब देंहटाएंएक बार कंफर्म कीजिये कि महीना 30 दिन वाला था कि 28 दिन वाला!!
जवाब देंहटाएंहा हा ....बहुत नाइंसाफी है
जवाब देंहटाएंबेचारा खदेरन!!
जवाब देंहटाएंमज़ेदार!!!
हा-हा-हा ....
तब तो परेशान होना स्वाभाविक है।
जवाब देंहटाएंआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार 29.01.2011 को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
जवाब देंहटाएंआपका नया चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
हाहा.. मस्त है..
जवाब देंहटाएंचपर-चपर फिर शुरू! :)