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मंगलवार, 28 जून 2011

समय जो बीत गया

खदेरन और फाटक बाबू लॉन में बैठे अभी-अभी थमी बारिश का लुत्फ़ ले रहे थे और बात-चीत कर रहे थे।

शादी पर बात आ गई। शादी के दिनों को याद करते हुए फाटक बाबू ने कहा, “जब तक शादी नहीं हुई थी मुझे एहसास ही नहीं था कि सच्ची ख़ुशी क्या होती है?”

खदेरन ने बड़े भोलेपन से कहा, “छोड़िए न फाटक बाबू! अब पछताने से क्या फ़ायदा? वह समय तो बीत गया।”

8 टिप्‍पणियां:

  1. :):)एक दम सही बात है,अब पछताने से क्या फायेदा ,वह समय तो बीत गया ....

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  2. अब पछताने से क्या फ़ायदा?
    सही कहा है। खदेरन अब समझदार होता जा रहा है।

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  3. सुख की कीमत तो उसके जाने के बाद ही पता चलती है हा हा हा हा हा

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