खदेरन और फाटक बाबू लॉन में बैठे अभी-अभी थमी बारिश का लुत्फ़ ले रहे थे और बात-चीत कर रहे थे।
शादी पर बात आ गई। शादी के दिनों को याद करते हुए फाटक बाबू ने कहा, “जब तक शादी नहीं हुई थी मुझे एहसास ही नहीं था कि सच्ची ख़ुशी क्या होती है?”
खदेरन ने बड़े भोलेपन से कहा, “छोड़िए न फाटक बाबू! अब पछताने से क्या फ़ायदा? वह समय तो बीत गया।”
हा हा हा । बहुत सही कहा।
जवाब देंहटाएं:):) सारे दुखह तो बाद में ही आते हैं
जवाब देंहटाएं:):)एक दम सही बात है,अब पछताने से क्या फायेदा ,वह समय तो बीत गया ....
जवाब देंहटाएंअब पछताने से क्या फ़ायदा?
जवाब देंहटाएंसही कहा है। खदेरन अब समझदार होता जा रहा है।
सुख की कीमत तो उसके जाने के बाद ही पता चलती है हा हा हा हा हा
जवाब देंहटाएंहाहाहाहाहााहहाहाहाा
जवाब देंहटाएंसमय चूकि पुनि का पछतानि!!
जवाब देंहटाएंहा हा हा।
जवाब देंहटाएं