फुलमतिया जी और खदेरन में जम कर तू-तू, मैं-मैं हुई।
नाराज़ होकर फुलमतिया जी ने ‘मैं मायके चली जाऊंगी तुम देखते रहियो’ को अंजाम देने का निर्णय लिया।
स्टेशन पर ट्रेन आने की प्रतीक्षा कर रहीं थी, कि हांफता-कांपता खदेरन पहुंचा। उसे अब तक अपनी ग़लती का अहसास होने लगा था। उसने फुलमतिया जी को मनाने के जितने भी तरीक़े उसे आते थे आजमा डाले। पर ‘मायके चली जाऊंगी’ के अपने निर्णय पर वो अटल रहीं।
थक हार कर अंत में खदेरन बोला, “अगर आपने मेरे साथ वापस लौटना नहीं स्वीकार किया तो मैं आने वाली गाड़ी से कटकर मर जाऊंगा। … और हां, मुझे आपका निर्णय फ़ौरन चाहिए।”
फुलमतिया जी का दिल इसपर भी नहीं पिघला था, और बोलीं, “मुझे सोचने दो जल्दी क्या है? गाड़ी तो हर आधे घंटे में आती है।”
हा हा हा हा। प्यार करे आरी चलवाये।
जवाब देंहटाएंहा हा हा
जवाब देंहटाएं:):):):)
जवाब देंहटाएंमज़ेदार!
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा ....
न्यायपालिका की जय!!
जवाब देंहटाएं:))
जवाब देंहटाएंJi haan train toh har adhe ghante ke baad aati hai ! kuchh der aur seh lenge !
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