खांसी चली जाएगी |
एक बार फिर शाम के वक़्त खदेरन पहुंच गया दोस्तों की महफ़िल में। अब आपको तो पता है ही कि जब खदेरन दोस्तों के साथ होता है, तो क्या होता है?
खदेरन ने उस दिन आनाकानी की, “नहीं – नहीं, यार फेंकू! आज नहीं!" आज मुझे बड़ी ज़ोर की सर्दी-खांसी है।” अब मित्र मंडली ऐसे कहां मानने वाली होती है। फेंकू ने ज़ोर दिया, “अरे! कुछ नहीं होता यार। लगा ले। सब ठीक हो जाएगा। सर्दी-खांसी चली जाएगी।” खदेरन फिर भी आश्वस्त नहीं हुआ और उसने पूछा, “क्या दारू पीने से सर्दी-खांसी चली जाती है?” बगल में बैठा, चार पेग लगा चुका, हुलासी प्रसाद, जो अब तक चुप था, बोला, “क्यों नहीं जाएगी? ज्ब दारू पीने से मेरा घर, ज़ायदाद, पैसा, जमा पूंजी, सब कुछ चला गया, … तो तेरी सर्दी-खांसी क्या चीज़ है! पी ले!!” |
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रविवार, 22 अगस्त 2010
खांसी चली जाएगी
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आज मुझे बड़ी ज़ोर की सर्दी-खांसी है।
जवाब देंहटाएंha
ha
ha
ha
ha
हा हा हा ...बिलकुल सही
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंHi..
जवाब देंहटाएंSanjay ji aap bhi Kaderan ki party main shamil ho jaayiye.. Hahaha
Deepak..
फिर तो मेरी छींक भी चली जायेगी..अभी जाता हूँ फेंकूं के साथ. :)
जवाब देंहटाएंहास्य में गहरा भाव चढ़ा दिया।
जवाब देंहटाएंप्रेरक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं*** राष्ट्र की एकता को यदि बनाकर रखा जा सकता है तो उसका माध्यम हिन्दी ही हो सकती है।
ha,,,ha,,ha,,ha
जवाब देंहटाएंजब इतना कुछ चला गया दारू से तो कमबख्त ये खांसी क्या चीज है
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बिलकुल सही राय दी
सच तो है ... दारू चीज़ ही ऐसी है .. हा हा ... मजेदार ...
जवाब देंहटाएंमज़ेदार!
जवाब देंहटाएंहाहाहा......
वो ख़ुद भी...चला जाएगा...!
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा...!
hahahha..
जवाब देंहटाएंbahut khub...
mere blog par is baar..
पगली है बदली....
http://i555.blogspot.com/
aur ek din khasi ke sath khud bhi chala jayega .........
जवाब देंहटाएंVah..vah...vah....vah....
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