आने जाने में … आपको तो मालूम है फाटक बाबू ने गाड़ी ख़रीद ली है। पुरानी है तो क्या हुआ?
चलाना भी सीख लिया है, नवसिखुआ हैं तो क्या हुआ?
एक दिन उन्होंने खंजन देवी को कहा, “गाड़ी तो अब चलाना सीख ही गया हूँ। सोचता हूँ गांव हो आऊँ।”
खंजन देवी ने पूछा, “कब लौटेंगे?” फाटक बाबू बोले, “कल शाम तक। कोई वहां रुकना थोड़े ही है। लोगों को गाड़ी दिखाना है। बस!”
… और फाटक बाबू चल दिए गांव के लिए। खंजन देवी उनके लौटने की प्रतीक्षा करती रहीं। फाटक बाबू लौटे छह दिनों के बाद।
चिंतित खंजन देवी ने पूछा, “आप तो बोले थे कि दूसरे दिन ही लौट आऊँगा, पर इतने दिन लगा दिए?”
फाटक बाबू ने बताया, “जाने में तो एक ही दिन लगा पर आने में पांच दिन लग गए।”
खंजन देवी की चिंता न मिटी। पूछी, “क्यों?” फाटक बाबू ने बताया, “ये कार बनाने वाले भी ग़ज़ब के लोग हैं! जाने के लिए तो पांच गियर बनाए हैं, पर लौटने के लिए सिर्फ़ एक गियर है - (रिवर्स गियर!)।” |
nice
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा हा हा हा ..फाटक बाबू ज़रूरत से ज़्यादा इंटेलीजेंट है...
जवाब देंहटाएंsahi hai bhai ye car banane walo ki galti to hai hi ha ha ha mjedar
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा हा ......हाय री समझदारी !
जवाब देंहटाएंये हुई न समझ की बात....
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह !
आप ने तो फिर हँसी की एक और गोली खिला दी।
अब हफ़ता हँसते-हँसते निकलेगा ।
समझदारी वाली बात है ना
जवाब देंहटाएंडेली डोज़ हंसी का
बहुत खूब---मजेदार।
जवाब देंहटाएंलीजिये, कार बनाने वालों से मिस्टेक।
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा हा..... बहुत कमीने है कार बनाने वाले..... ;-)
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहिंदी, नागरी और राष्ट्रीयता अन्योन्याश्रित हैं।
yaar sister maine aapki ek post padhi aur bas padhta hi chala jaa raha hu..
जवाब देंहटाएंbandh liya aapne hame..