हंसना ज़रूरी है, क्यूंकि …हंसने से हम मन की शक्ति का अधिक से अधिक प्रयोग कर पाते हैं। |
घुटने टेक कर… |
आपको तो पता है ही कि फाटक बाबू खदेरन के पड़ोसी हैं। तो खदेरन के घर जो भी खटर-पटर होती है, फटक बाबू को पता चल ही जाता है।
उस दिन सुबह से ही किसी बात पर फुलमतिया जी बिगड़ी हुई थीं। खदेरन भी कुछ न कुछ बोले ही जा रहा था। खदेरन और फुलमतिया जी की इस खटर-पटर से फाटक बाबू को तो आए दिन वास्ता पड़ता ही रहता था। कोई नई बात नहीं थी।
नई बात यह थी कि थोड़ी ही देर बाद उन्होंने देखा, खदेरन बाहर आ गया है, और भीतर शांति है। फाटक बाबू उसके पास पहुंचे और पूछा, “पत्नी से लड़ाई खतम हो गई?”
खदेरन ने वीर रस में जवाब दिया, “और नहीं तो क्या … फुलमतिया जी घुटने टेक कर मेरे पास आई … तो लड़ाई को खतम करना पड़ा।”
फाटक बाबू को खदेरन के इस उत्तर से काफ़ी हैरानी हुई। उन्होंने कहा, “अच्छा! फुलमतिया जी ने घुटने टेक दिए?!”
खदेरन ने अपना वीर रस बरकरार रखते हुए कहा, “और नहीं तो क्या…!?”फाटक बाबू को यह हास्य रस से कम नहीं लगा, फिर भी उन्होंने पूछा, “फुलमतिया जी ने घुटने टेक कर क्या कहा?”खदेरन का स्वर करुण रस में डूब गया, बोला, “कहना क्या था, इस बार और कोई उपाय नहीं देख … फुलमतिया जी को घुटने टेक कर ही आना पड़ा मेरे पास, आईं और झुक कर मेरी आंखों में आंखें डल कर बोलीं, पलंग के नीचे से निकल आओ, मैं कुछ नहीं बोलूंगी…।” |
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बुधवार, 18 अगस्त 2010
घुटने टेक कर…
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हीहीहीहीहीही.....अपन को पता नहीं................अपन को पलंग के नीचे घुसने की नौबत नहीं आई है हीहीहीहहीही
जवाब देंहटाएंहा हा!! वाह रे खदेरन!
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंचलो घुटने तो टिके
जवाब देंहटाएंha ha ha ha ..
जवाब देंहटाएंमज़ेदार!
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा ....
बहुत अच्छा। हा हा।
जवाब देंहटाएंअब समझ आया कि आजकल पलंग में नीचे जगह क्यों नहीं होती। ना रहे बांस और ना बजे बांसुरी। बढिया है।
जवाब देंहटाएंमज़ेदार!
जवाब देंहटाएंमज़ेदार!
मज़ेदार!
मज़ेदार!
मज़ेदार!
मज़ेदार!]
मज़ेदार!
pehle bhi suna hai lekin dobra sun kar bhi achcha laga .....
जवाब देंहटाएंHa ha ha ha...Majedaar
जवाब देंहटाएंye to mjedar thi par utana hi majedar ajit ji ka comment hai ha ha ha
जवाब देंहटाएंहा...हा...हा.... !
जवाब देंहटाएं:-)
जवाब देंहटाएंमज़ेदार!
जवाब देंहटाएंक्या बात है, खदेरन जी!
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा
बहुत अच्छा। हा हा।
जवाब देंहटाएंहा ह आह अ...कितना हंसाती हैं आप ...
जवाब देंहटाएंनमस्कार,
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लॉगिंग के पास आज सब कुछ है, केवल एक कमी है, Erotica (काम साहित्य) का कोई ब्लॉग नहीं है, अपनी सीमित योग्यता से इस कमी को दूर करने का क्षुद्र प्रयास किया है मैंने, अपने ब्लॉग बस काम ही काम... Erotica in Hindi. के माध्यम से।
समय मिले और मूड करे तो अवश्य देखियेगा:-
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टिल्लू की मम्मी -२
Kafi majedaar hai. Main yahan pehli baar aayi hoon and ab follow kar rahi hoon. Bahut hi achchha laga ye blog. Sorry, mujhe pata nahi ki main Hindi mein kaise likhu, matlab ki mujhe uska option hi nahi dikh raha hai, so english mein hi message daal rahi hoon.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंहिन्दी हमारे देश और भाषा की प्रभावशाली विरासत है।
वाह बहुत ही मजेदार था.. :)
जवाब देंहटाएंhamaare ghar to palang hai hi nahin.....
जवाब देंहटाएंdeewaan hai...jiski unchaai 5'' inch kewal hai...
hak kahaan jaayein...???
:(
:(
जवाब देंहटाएंHa ha ha ha...Majedaar
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