एक रुपए का सिक्का देखते ही भिखारी बोला, “क्या साहब! ये एक रुपया? आप पहले मुझे दस रुपये देते थे। फिर पांच रुपये देने लगे और अब तो हद ही कर दी, एक रुपया? ऐसा क्यों?”
फाटक बाबू ने समझाया, “पहले मैं कुंवारा था, फिर मेरी शादी हुई और अब बच्चे भी हो गए हैं, इस लिए एक रुपए!”
भिखारी यह सुन कर बोला, “वाह साहब! खूब, मेरे पैसों से क्या ऐश हो रही है आपकी!”
हाहाहाहाहाहाहाहहाहहाहाहाहाहाा
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंha ha ha
जवाब देंहटाएंसच ही कहा
भिखारी के पैसों पर ऐश ...गलत बात है ...!
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा हा ........
जवाब देंहटाएंha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ...........बहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन। लाजवाब।
जवाब देंहटाएं*** हिन्दी प्रेम एवं अनुराग की भाषा है।
हा हा हा हा। क्या ऐश चल रही है।
जवाब देंहटाएं:-)....
जवाब देंहटाएंबढ़िया
हा हा .. मस्त है..
जवाब देंहटाएंhe.he..he...nice one......
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया और मज़ेदार लगा!
जवाब देंहटाएंहा हा हा ..... बहुत ही ज़बरदस्त!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहा हा हा………………सही तो कह रहा है।
जवाब देंहटाएंमज़ेदार!
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा....
:)
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंbahut khub
जवाब देंहटाएंha ha ha ha ha majedar
जवाब देंहटाएंकिसी को हँसाना आसान नही, किन्तु आपने यह कितना सहज कर दिया। मुझे हँसाने के लिये मै आपकी शुक्रगुजार हूँ
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हा हा हा हा,
फाटक बाबू की ऐश... और हमारी भी... भिखारी की कीमत पर...
आभार!
...
हा,,हा,,हा,,हा,,हा,,हा,,हा,,हा
जवाब देंहटाएंसही बात है भिखारी की
ha ha ha ...
जवाब देंहटाएंzabardast...!!
Mazedaar.......
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