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शनिवार, 21 अगस्त 2010

क्या ऐश है …!

हंसना ज़रूरी है, क्यूंकि …

बिना आवाज़ किए हल्की सी मुस्कुराहट के साथ हंसने से चेहरे की त्वचा अच्छी हो जाती है और चेहरा दमकने लगता है।

क्या ऐश है …!


फाटक बाबू एक दिन बाज़ार गये। बाज़ार में उनको एक भिखारी मिल गया। भिखारी जाना पहचाना था। वह फाटक बाबू से पैसे मांगने लगा। फाटक बाबू ने उसे एक रुपये का सिक्का दिया।


buddha एक रुपए का सिक्का देखते ही भिखारी बोला, “क्या साहब! ये एक रुपया? आप पहले मुझे दस रुपये देते थे। फिर पांच रुपये देने लगे और अब तो हद ही कर दी, एक रुपया? ऐसा क्यों?”

फाटक बाबू ने समझाया, “पहले मैं कुंवारा था, फिर मेरी शादी हुई और अब बच्चे भी हो गए हैं, इस लिए एक रुपए!”

buddha भिखारी यह सुन कर बोला, “वाह साहब! खूब, मेरे पैसों से क्या ऐश हो रही है आपकी!”

25 टिप्‍पणियां:

  1. हाहाहाहाहाहाहाहहाहहाहाहाहाहाा

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  2. भिखारी के पैसों पर ऐश ...गलत बात है ...!

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  3. ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ...........बहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट....

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  4. बेहतरीन। लाजवाब।

    *** हिन्दी प्रेम एवं अनुराग की भाषा है।

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  5. बहुत ही बढ़िया और मज़ेदार लगा!

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  6. हा हा हा ..... बहुत ही ज़बरदस्त!

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  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  8. हा हा हा………………सही तो कह रहा है।

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  9. किसी को हँसाना आसान नही, किन्तु आपने यह कितना सहज कर दिया। मुझे हँसाने के लिये मै आपकी शुक्रगुजार हूँ

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  10. .
    .
    .
    हा हा हा हा,

    फाटक बाबू की ऐश... और हमारी भी... भिखारी की कीमत पर...

    आभार!


    ...

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  11. हा,,हा,,हा,,हा,,हा,,हा,,हा,,हा
    सही बात है भिखारी की

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