किताबे ग़म में ख़ुशी का ठिकाना ढ़ूंढ़ो,
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मंगलवार, 14 सितंबर 2010
क्या भरूँ?
क्या भरूँ?
भगावन एक आवेदन फार्म भर रहा था। कई सारे कॉलम थे। एक कॉलम में क्या भरना है जब उसकी समझ में नहीं आया तो उसने अपने पापा खदेरन से पूछा, “पापा! मदर टंग वाले कॉलम में क्या भरूँ?”
खदेरन ने समझाया, “बेटे! वहां लिख दे, बहुत लंबी एवं बेक़ाबू!”
हा हा !! बहुत खूब. ये एकदम जबरदस्त बात कही खदेरन ने.
जवाब देंहटाएंगलत बात ...:):)
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुती।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज़्ज़त करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिन्दी की इज़्ज़त न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे
भारतेंदु और द्विवेदी ने हिन्दी की जड़ें पताल तक पहुँचा दी हैं। उन्हें उखाड़ने का दुस्साहस निश्चय ही भूकंप समान होगा। - शिवपूजन सहाय
हिंदी और अर्थव्यवस्था-2, राजभाषा हिन्दी पर अरुण राय की प्रस्तुति, पधारें
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जवाब देंहटाएं.
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हा हा हा हा,
हो हो हो हो...
अब अगर आप भी ऐसा कहेंगी, तो कैसे चलेगा ?
..... ;))
...
गलत बात ...ऐसा नहीं कहत...
जवाब देंहटाएंमज़ेदार!
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा ....
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज़्ज़त करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिन्दी की इज़्ज़त न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे
हरीश प्रकाश गुप्त की लघुकथा प्रतिबिम्ब, “मनोज” पर, पढिए!
हा हा हा ...
जवाब देंहटाएंहा... हा... हा... हा......
जवाब देंहटाएंहंसी भी बेकाबू हो गयी है....
हा हा हा ...
जवाब देंहटाएंहाय राम !....इत्ता सच भी अच्छा नहीं :]
जवाब देंहटाएंलंबी एवं बेक़ाबू!”
जवाब देंहटाएंna ho to tum dono sudhare kaise rahoge
Ha...ha.....ha...ha..ha..
जवाब देंहटाएंगनिमत है उस समय वह वहां हाजिर नहीं थी :-)
जवाब देंहटाएंगनिमत है उस समय वह वहां हाजिर नहीं थी :-)
जवाब देंहटाएंha ha ha ..he he he.. :P :D :)))))
जवाब देंहटाएंहा हा !!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..मजेदार ..हा हा हा हा
जवाब देंहटाएंहा हा! हद से ज्यादा हँसे..मैं भी बेटे को यही कहूँगा..अब से...:)
जवाब देंहटाएंहिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!