भगावन की नालायकी से तंग फुलमतिया जी ने एक दिन अपने पति खदेरन से कहा, “सुनो जी! भगावन पैसे बहुत उड़ाने लगा है! जहां भी रखो खोज लेता है और खर्च कर देता है। क्या किया जाए?” खदेरन ने उपाय बताते हुए कहा, “नालायक की किताब में पैसे रख दो, इम्तहानों तक रूपये सुरक्षित रहेंगे। ” |
उपाय तो बढिया है
जवाब देंहटाएंbadiya tarika hai ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंमराठी कविता के सशक्त हस्ताक्षर कुसुमाग्रज से एक परिचय, राजभाषा हिन्दी पर अरुण राय की प्रस्तुति, पधारें
एकदम मस्त फार्मूला। झकास है।
जवाब देंहटाएंवाकई बहुत ही शानदार तरीका है!
जवाब देंहटाएंवहा इसे कहते है दिमाग लगना |
जवाब देंहटाएंहा हा ...सही इलाज
जवाब देंहटाएंवाह ..बहुत बढ़िया ....
जवाब देंहटाएंचलो मैं तो आज से ही अमल में ले आती हूँ
जवाब देंहटाएंबढ़िया तरीका है.
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंमज़ेदार!
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा....
हा-हा-हा..... मज़ेदार....
जवाब देंहटाएंवाह !! मजा आ गया :-)
जवाब देंहटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंBada hi nek kaam kar rahi hain aap to... bahut pasand aaya aapka hatke blog... :)
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंकाव्य प्रयोजन (भाग-९) मूल्य सिद्धांत, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंहा... हा ... हा ...हा...हा.. हा..