कंजूस-मक्खीचूस |
सेठ मक्खीचंद मृत्युशैय्या पर थे. उन्होंने अपने बेटे करमकीट को बुला करा कहा, "बेटा अब मेरी जिन्दगी का कोई ठिकाना नहीं. यह पांच रूपये लो और झट से बाजार से एक माला ले आओ." सेठ मक्खीचंद, "अरे ! अगर मगर क्या ? फट से ले आ और मेरे गले में डाल कर एक फोटो ले ले.... वरना कहीं पहले मर गया तो हर साल एक माला चढ़ाना पड़ेगा... !!” |
:-)
जवाब देंहटाएंदूरदृष्टि इसे कहते हैं
जवाब देंहटाएंआईडिया!!!!!!. और....फूलों को मुर्झाने का डर भी नहीं रहेगा.
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंवाह, समझदार।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंकहानी ऐसे बनी– 5, छोड़ झार मुझे डूबन दे !, राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें
काफी कंजूस बाप है जो आगे तक की सोच रहा है .... हा हा ह
जवाब देंहटाएंमज़ेदार!
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा....
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
काव्यशास्त्र (भाग-3)-काव्य-लक्षण (काव्य की परिभाषा), आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
प्राण जाए, पर नकद न जाए ..
जवाब देंहटाएंbahut sundar tarkeeb - bachat ki vaah
जवाब देंहटाएंek samjhadar insan ko aap kanjus kyo kah rahi hai ha ha ha
जवाब देंहटाएंhaa...haa..haa..haa..ha..ha..ha..ha..h.h
जवाब देंहटाएंyeh kanjus to lakkhi mal aur karori mal sai bhee jayada kanjoos nikala
जवाब देंहटाएंhai bhagvaan itna kanjus ......
जवाब देंहटाएंसाला मरने वाला है और कंजूसी छोड़ी नहीं जाती।
जवाब देंहटाएंआपके किरदार अच्छे हैं।
मेरे ब्लॉग पर भी आयें... मुझे अच्छा लगेगा।
http://tikhatadka.blogspot.com/
:) मरते हुए भी दूर की सोच रहा है ...
जवाब देंहटाएंइसे कहते है एक महान कंजूस..बढ़िया मजेदार रचना..बधाई.
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना....
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (27/9/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
हा,,,हा,,,हा,,,हा,,हा,,हा,,हा,,हा
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
क्या आईटम है :)
लगता है कंजूसी के 101 नुस्ख़े इन्हीं की लिखी हुई है!!
जवाब देंहटाएंवाह! क्या आईडिया है! ज़बरदस्त लगा !आखिर बीमार आदमी ने दूर की सोच ली!
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
.
हा हा हा हा,
आपने यह तो बताया नहीं कि करमकीट ने जब फोटो खींची तो सेठ जी के सामने एक मोटी सी धूपबत्ती भी जला दी... मक्खीचंद के मरने के बाद न कभी फोटो माला पहनाने की जरूरत रही न आगे धूप जलाने की!
...
हा हा हा....गजब!
जवाब देंहटाएंहाहाहाहहा सही है अपनी आने वाली पुश्तों की भी सोच ली सेठ जी ने
जवाब देंहटाएंbahut khoob....
जवाब देंहटाएंकंजूस तो कंजूस मगर बेटे से कितना प्यार करता है!
जवाब देंहटाएं..मजेदार।
मरते समय भी अपने बेटे के बारे में ही सोच रहा है....
जवाब देंहटाएंहल्की-फुल्की बात में बड़ी बात छुपी है ।
हा हा हा ... मजेदार है बहुत ....
जवाब देंहटाएं