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शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

लापरवाही

लापरवाही

बात बहुत पुरानी है। तब फाटक बाबू की नई-नई नौकरी लगी थी। वो अपने साहब घोंटू मल के पी.ए. थे। साहब बड़े लापरवाह किस्म के इंसान थे। दिन भर इधर-उधर, मीटिंग-सीटिंग के नाम पर बिता देते थे और शाम तक औफिस में फाइलों की ढ़ेर लग जाती थी। वह ढ़ेर जमा होते जाता। आज छोड़ो कल देखेंगे। साहब यह बात रोज़ कहते और घर चल देते।

एक दिन बड़ा साहब राउंड पर आये और घोंटू मल की टेबुल पर फाइलों की ढ़ेर देख कर बहुत नाराज़ हुए। डांट-डपट लगा कर यह फ़रमान देते गये कि चाहे जितनी देर हो सारी फाइलें आज ही क्लीयर हो जानी चाहिए वर्ना ...?

बहुत बड़ा संकट था। घोंटू मल फाटक बाबू को बोले, आज आप भी रुकिए। दोनों मिल कर काम करते हैं।

अब बात पुरानी है तो ज़ाहिर है वह ज़माना बाल प्वाएंट या जेल पेन वाला नहीं था। इंक पेन से हस्ताक्षर होता था। घोंटू मल फाइलों पर हस्ताक्षर करते और फाटक बाबू ब्लाटिंग पेपर से सुखाते। इस तरह रात के क़रीब तीन बजे काम ख़तम हुआ। दोनों अपने-अपने घर गये।

दूसरे दिन दफ़्तर पहले फाटक बाबू पहुंचे। फिर क़रीब एक घंटे बाद घोंटू मल पहुंचे। दरवाज़ा खोलकर भीतर घुसते ही घोंटू मल का माथा ही चकरा गया। टेबुल पर फाइलों का उतना ही ढ़ेर!

उन्होंने फाटक बाबू को बुलाया और पूछा, माज़रा क्या है?

फाटक बाबू बोले, सर, सारा फाइल वापस आ गया है।

घोंटू मल ने प्रश्न किया, क्यों?

फाटक बाबू ने जवाब दिया, टेक्निकल फाल्ट है सर।

घोंटू मल चौंके, टेक्निकल फाल्ट?

फाटक बाबू बोले, हां सर, कल सर, आपने सारी फाइलों पर पेंसिल से हस्ताक्षर कर दिया था। फाइलें वापस कर दी गईं हैं इस नोट के साथ कि ईंक से साइन कर के भेजें।

घोंटू मल ने अपना माथा ठोक लिया और बोले, यदि मैं पेंसिल से साइन कर रहा था तो रात भर तू ब्लोटिंग पेपर से क्या सुखा रहा था?

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