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बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

खदेरन और फाटक बाबू के (संवाद) बतकुच्चन --- शोक सभा

खदेरन और फाटक बाबू के (संवाद) बतकुच्चन ---

शोक सभा

पार्क में यूंही बहुत देर से दोनों बैठे थे।

बात-चीत का स्टॉक लगभग ख़त्म था।

पर दोनों को अभी भी घर जाने का  मन नहीं था।

अब बात-चीत बतकुच्चन तक पहुंच गई थी।

इस परिप्रेक्ष्य में ……

खदेरन और फाटक बाबू के (संवाद) बतकुच्चन ---

फाटक बाबू (जम्हाई लेते हुए) :: तुम कभी किसी शोक सभा में गए हो।

खदेरन (आसमान की तरफ़ देखते हुए) :: हां, गया था। (जम्हाई लेते हुए) दो घंटे बैठा रहा … पर किसी ने हंस के बात तक नहीं की।

7 टिप्‍पणियां:

  1. कितने बुरे लोग है घर आये मेहमान से हँस के बात भी नहीं करते है |

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  2. ये तो खदेरन की मासूमियत की हईट थी जी ...

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