खदेरन और फाटक बाबू के (संवाद) बतकुच्चन ---
शोक सभा
पार्क में यूंही बहुत देर से दोनों बैठे थे।
बात-चीत का स्टॉक लगभग ख़त्म था।
पर दोनों को अभी भी घर जाने का मन नहीं था।
अब बात-चीत बतकुच्चन तक पहुंच गई थी।
इस परिप्रेक्ष्य में ……
खदेरन और फाटक बाबू के (संवाद) बतकुच्चन ---
फाटक बाबू (जम्हाई लेते हुए) :: तुम कभी किसी शोक सभा में गए हो।
खदेरन (आसमान की तरफ़ देखते हुए) :: हां, गया था। (जम्हाई लेते हुए) दो घंटे बैठा रहा … पर किसी ने हंस के बात तक नहीं की।
बहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंकितने बुरे लोग है घर आये मेहमान से हँस के बात भी नहीं करते है |
जवाब देंहटाएंबताईये..जरा।
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा...
जवाब देंहटाएंये तो खदेरन की मासूमियत की हईट थी जी ...
जवाब देंहटाएंइ तो सरासर इंसलेट है!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पोस्ट |बधाई |
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