झमा-झम वर्षा हो रही थी।
कड़क-कड़क कर बिजली चमक रही थी।
भीगता-भागता खदेरन एक दूकान में धुसा। हांफते-कांपते दुकानदार से बोला, “बड़े भाई! एक डबल रोटी दे दीजिए।”
दुकानदार ने उसकी दयनीय स्थिति देखी। उसे तरस आया। वह पूछ बैठा, “क्या आप शादी-शुदा हैं?”
बेहाल-हाल वाले खदेरन ने चेहरे पर लटकी पानी की बूदों को झटकते हुए कहा, “आप क्या समझते हैं कि इस कहर बरपाते हुए मौसम में मेरी मां मुझे घर के बाहर भेजेगी?”
बेचारा पति |
जवाब देंहटाएंभाभी जी! ई तो लघुकथा हो गया... इसको आपके ब्लॉग पर होना नहीं चाहिए था!!
जवाब देंहटाएंसलिल सर, ये सूक्ष्म कथा हो गयी...एकदम नानो कहानी....बहुत गूढ़ वाला...
जवाब देंहटाएंha ha ha ha...... zabardast!!! behtreen!!!
जवाब देंहटाएंmazedaar
जवाब देंहटाएंha ha ha
zabardast! zabardast! zabardast! zabardast!zabardast!
जवाब देंहटाएंहंस ले मगर कई घरों की हकीकत है ये !
जवाब देंहटाएंहा हा हा बहुत अच्छा।
जवाब देंहटाएंhi..
जवाब देंहटाएंpati to hamesha se bechare rahe hain...aaj bhi hain....
sundar....
Deepak
वाह वाह।
जवाब देंहटाएंसही है, बीबी ही भेज सकती है.
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