फ़ॉलोअर

बुधवार, 4 अगस्त 2010

वैलकम!

हंसना ज़रूरी है, क्यूंकि …


हंसते रहने से आत्मविश्‍वास में वृद्धि होती है।

वैलकम !

खदेरन एक दिन फटेहाल दिखा। लगा जैसे उसे काफी मार पड़ी हो।

फाटक बाबू ने पूछ ही लिया, “खदेरन तेरी ये हालत किसने की ? क्‍यों की? ”

खदेरन ने सुनाया “काफी दिनों से बेकाम था। कुछ दिनों पहले ही मुक्तिधाम के रख-रखाव का काम मिला। मैंने स्‍वीकार कर लिया। अब जो भी काम हो उसे अच्‍छे ढंग से तो करना चाहिए ना फाटक बाबू…?”

फाटक बाबू ने हामी भरी, “हां, बिल्कुल अच्छे ढंग से करना चाहिए।”

खदेरन ने आगे बताया, “यह ख्‍याल दिमाग में आया ..... तो मैंने इस मुक्तिधाम के मेन गेट के बाहर “वैलकम” का बोर्ड लगा दिया । बस फिर क्‍या था ..... हर आने-जाने वाले से बहुत मार पड़ी … फाटक बाबू…!”

11 टिप्‍पणियां:

  1. हाहाहाहाहा........सब जानते हैं कि जाना है वहीं, पर कोई तैयार नहीं होता............

    जवाब देंहटाएं
  2. ये दुनिया भी कितनी पागल है...
    कितनी अजीब...!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. आनंद आ गया मुझे लगता है कि आप पहली महिला हैं जिन्होंने इस विषय पर ब्लाग लेखन शुरू किया ...मुस्कान के साथ आपको शुभकामनायें देकर जा रहा हूँ !

    जवाब देंहटाएं
  4. Hi..

    Subah subah le karke aati..
    Ho tum hasya foohaar..
    Meethe se tonic se hartin..
    Gamon ko tum har baar..

    Thanks a lot.. May god bless u.

    DEEPAK..

    जवाब देंहटाएं
  5. हा हा हा हा एक बार फिर खदेरन ने अपनी (कम) अक्ल का प्रदर्शन किया !!!

    जवाब देंहटाएं
  6. इतना भी बुरा नहीं कहा था सिर्फ वेलकम ही तो कहा था हा...हा....हा

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार प्रसार मे आपका योगदान सराहनीय है।

    जवाब देंहटाएं