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रविवार, 22 अगस्त 2010

खांसी चली जाएगी

खांसी चली जाएगी

एक बार फिर शाम के वक़्त खदेरन पहुंच गया दोस्तों की महफ़िल में। अब आपको तो पता है ही कि जब खदेरन दोस्तों के साथ होता है, तो क्या होता है?


ख़ैर उसके परम मित्र फेंकू दास ने खदेरन को ऑफर किया, “आजा! … हो जाय!!”

खदेरन फुलमतियाखदेरन ने उस दिन आनाकानी की, “नहीं – नहीं, यार फेंकू! आज नहीं!" आज मुझे बड़ी ज़ोर की सर्दी-खांसी है।”

अब मित्र मंडली ऐसे कहां मानने वाली होती है। फेंकू ने ज़ोर दिया, “अरे! कुछ नहीं होता यार। लगा ले। सब ठीक हो जाएगा। सर्दी-खांसी चली जाएगी।”

खदेरन फुलमतियाखदेरन फिर भी आश्‍वस्त नहीं हुआ और उसने पूछा, “क्या दारू पीने से सर्दी-खांसी चली जाती है?”

बगल में बैठा, चार पेग लगा चुका, हुलासी प्रसाद, जो अब तक चुप था, बोला, “क्यों नहीं जाएगी? ज्ब दारू पीने से मेरा घर, ज़ायदाद, पैसा, जमा पूंजी, सब कुछ चला गया, … तो तेरी सर्दी-खांसी क्या चीज़ है! पी ले!!”

14 टिप्‍पणियां:

  1. आज मुझे बड़ी ज़ोर की सर्दी-खांसी है।
    ha
    ha
    ha
    ha
    ha

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  2. Hi..

    Sanjay ji aap bhi Kaderan ki party main shamil ho jaayiye.. Hahaha

    Deepak..

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  3. फिर तो मेरी छींक भी चली जायेगी..अभी जाता हूँ फेंकूं के साथ. :)

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  4. प्रेरक प्रस्तुति।

    *** राष्ट्र की एकता को यदि बनाकर रखा जा सकता है तो उसका माध्यम हिन्दी ही हो सकती है।

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  5. ha,,,ha,,ha,,ha
    जब इतना कुछ चला गया दारू से तो कमबख्त ये खांसी क्या चीज है
    -
    -
    बिलकुल सही राय दी

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  6. सच तो है ... दारू चीज़ ही ऐसी है .. हा हा ... मजेदार ...

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  7. वो ख़ुद भी...चला जाएगा...!
    हा हा हा हा...!

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  8. hahahha..
    bahut khub...

    mere blog par is baar..
    पगली है बदली....
    http://i555.blogspot.com/

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