हाथ फैलाए और गा रहा था “गरीबों की सुनो वो तुम्हारी सुनेगा तुम एक रूपया दोगे वो दस करोड़ देगा!”
देखा उसे घूर कर और बोली “शर्म नहीं आती मुर्गे की तरह बांगते हो और हाथ फैला कर सड़क पर भीख मांगते हो।” भिखारी पहले घबराया फिर मुस्काया बोला,
आपसे एक रूपये पाने की चाहत में क्या दफ्तर ही खोल लूँ।” |
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शुक्रवार, 14 मई 2010
गरीबों की सुनो!
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nice
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंसुबह सुबह ही हँसी आ गई!
जवाब देंहटाएंहा हा! सही तो कहा!
जवाब देंहटाएंआपका अन्दाज निराला, पर कई तो वाकई दफ्तर खोले बैठे हैं
जवाब देंहटाएंमजेदार!!!
जवाब देंहटाएंha ha ha
जवाब देंहटाएं........ निराला अन्दाज
जवाब देंहटाएंmaja aa gaya.............
जय हो! ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे। हा-हा-हा-हा....
जवाब देंहटाएंये एन.जी.ओ वाले तो दफ्तर ही खोल कर बैठे हुए हैं...
जवाब देंहटाएंमजेदार प्रस्तुति
हा-हा-हा-हा....
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