किताबे ग़म में ख़ुशी का ठिकाना ढ़ूंढ़ो,
अगर जीना है तो हंसी का बहाना ढ़ूंढ़ो।
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गुरुवार, 3 जून 2010
जहर
खदेरन फाटक बाबू से, “आज शाम तक अगर पचास हजार रूपये का इंतजाम नहीं हुआ तो बेइज्जती से बचने के लिए मुझे जहर पी लेना पड़ेगा। क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं?”
फाटक बाबू, “क्या करूँ खदेरन? मेरे पास तो एक बूंद भी नहीं है!”
आज मेरी ये अंतिम टिप्पणियाँ हैं ब्लोग्वानी पर. कुछ निजी कारणों से मुझे ब्रेक लेना पड़ रहा हैं . लेकिन पता नही ये ब्रेक कितना लंबा होगा . और आशा करता हूँ की आप मेरा आज अंतिम लेख जरूर पढोगे . अलविदा . संजीव राणा हिन्दुस्तानी
ha ha ha badhiya
जवाब देंहटाएंsundar!
जवाब देंहटाएंबहुत मजेदार !,,हर बार की तरह ,,,गुलगुली करता हुआ :) :) :) :) :)
जवाब देंहटाएंhaa haa
जवाब देंहटाएंहा हा!
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
जवाब देंहटाएंमजेदार
आईये जाने .... प्रतिभाएं ही ईश्वर हैं !
जवाब देंहटाएंआचार्य जी
nice
जवाब देंहटाएंमज़ेदार!
जवाब देंहटाएंHa-ha, kaafee samjhdaar hai phaatak baaboo
जवाब देंहटाएंजहर असली मिलेगा क्या?
जवाब देंहटाएंha...ha...ha...ha.... !
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा हा हां बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंआज मेरी ये अंतिम टिप्पणियाँ हैं ब्लोग्वानी पर.
कुछ निजी कारणों से मुझे ब्रेक लेना पड़ रहा हैं .
लेकिन पता नही ये ब्रेक कितना लंबा होगा .
और आशा करता हूँ की आप मेरा आज अंतिम लेख जरूर पढोगे .
अलविदा .
संजीव राणा
हिन्दुस्तानी
hahahahaha
जवाब देंहटाएंmast hai ji...
जवाब देंहटाएंha ha ha ha ha ha....
जवाब देंहटाएंमजेदार।
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