कुछ दिनों से खदेरन के घर में खूब चहल-पहल थी। पर खदेरन की कोई आवाज़ नहीं आ रही थी। यह बात फाटक बाबू को परेशानी में डाले दे रही थी। खदेरन दिख भी नहीं रहा था।
आज सुबह-सुबह बरामदे में खदेरन दिख गया। फाटक बाबू ने उसे पास बुलाया और पूछा, “क्या कहीं बाहर गए थे?”
खदेरन ने कहा, “ नहीं, घर में ही था। … क्यों?”
फाटक बाबू ने हैरानी जताते हुए कहा, “अच्छा! पर दिखे नहीं कई दिनों से! इसी लिए पूछ लिया।” फाटक बाबू ने फिर पूछा, “तुम्हारे घर में आजकल बहुत चहल-पहल है। मेहमान आए हैं क्या?”
खदेरन ने जवाब दिया, “हां।”
फाटक बाबू खदेरन के इस संक्षिप्त उत्तर से संतुष्ट न होते हुए पूछा, “कौन-कौन आया है घर में, बहुत सारे लोग लग रहे हैं।”
खदेरन ने इस बार पूरा बताया, “मैं, मेरी पत्नी, मेरी सास, और चारों सालियां।”
फाटक बाबू ने मुस्कुराते हुए कहा, “तभी तो ! .. अब समझा कि तुम्हारी आवाज़ क्यों नहीं सुनाई दे रही थी!! आजकल तुम्हारा तो मुंह उसी वक़्त खुलता होगा जब तुम जम्हाई लेनी हो या छींक आती होगी!!!”
हा हा!
जवाब देंहटाएंसही है। इतनी महिलाओं के सामने खदेरन का मुंह तो खुलता ही नहीं होगा।
जवाब देंहटाएंमज़ेदार!
हा-हा-हा....
bap re khaderan badi musibat me hai ha ha ha
जवाब देंहटाएंhehehehe......bahut badia........
जवाब देंहटाएंहा हा हा।
जवाब देंहटाएंहमारा भी यही हाल है अभी।
जवाब देंहटाएंha.... ha... ha.... ha.... !
जवाब देंहटाएंवाह! बड़ा मज़ेदार लगा!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लगा खदेरन के चुप रहने का राज
जवाब देंहटाएं:):)
जवाब देंहटाएंचुप रहने में भलाई है :))
जवाब देंहटाएं:):)सही है ..
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