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शनिवार, 30 अप्रैल 2011

थर्मामीटर

खदेरन डॉक्टर उठावन सिंह की क्लीनिक  पहुंचा। उसे तेज़ बुखार था। डॉक्टर ने अपना किट खोला। उसमें से उसने दो थर्मामीटर बाहर किया। दोनों थर्मामीटर दो तरह के थे।

खदेरन ने डॉप्क्टर उठावन से पूछा, “आपने दो-दो थर्मामीटर क्यों रखे हैं?”

डॉक्टर उठावन सिंह ने कहा, “यह जो पहला थर्मामीटर है, उसे मैं मरीज़ के मुंह में लगाता हूं ताकि मुझे पता चले कि उसका शरीर कितना गर्म है?”

ख्देरन ने पूछा, ‘‘ठीक है। और यह दूसरा?”

डॉक्टर उठावन सिंह ने बताया, “यह दूसरा थर्मामीटर मैं मरीज़ की जेब में लगाता  हूं, जिससे मुझे यह पता चले कि उसकी जेब कितनी गर्म है?”

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

स्कूल देर से

भगावन हांफता-हांफता स्कूल पहुंचा। कक्षा में घुसा तो देखा क्लास लग चुकी है।

टीचर गुनगुनिया ने उसे घूरते हुए पूछा, “आज स्कूल देर से आने का तुमने क्या बहाना ढ़ूंढा है?”

भगावन ने मासूमियत से जवाब दिया, “मैडम आज मैं इतनी तेज़ दौड़ कर आया हूं कि बहाना सोचने का मौक़ा ही नहीं मिला।”

बुधवार, 27 अप्रैल 2011

इस चित्र को देखें ….

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इसमें निर्देश दिया गया है …

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सोमवार, 25 अप्रैल 2011

इस चित्र का शीर्षक क्या हो?

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एक शीर्षक मैं ही दे देती हूं।

“बच्चे की जान लोगे क्या?”

रविवार, 24 अप्रैल 2011

हीरों का हार

एक दिन सज-धज कर खदेरन घर से निकला।

फाटक बाबू की नज़र उस पर पड़ी। उन्होंने पूछ दिया, “बड़े सुबह सवेरे किस तरफ़ चले?”

खदेरन ने बताया, ‘फुलमतिया जी का जन्म दिन है। उनके लिए कोई गिफ़्ट खरीदने जा रहा हूं।”

फाटक बाबू ने प्रसन्न हो कहा, ‘वाह! बहुत अच्छी बात है! क्या लाने जा रहे हो?”

खदेरन ने जवाब दिया, “सोचता हूं हीरों के नेकलेस जैसा कोई हार ले आऊं!”

फाटक बाबू ने कहा, “आइडिया तो बुरा नहीं है। पर, खदेरन इन सब की उपयोगिता आज कल कोई खास नहीं है। उस पर से चोरी-चकारी का डर भी लगा ही रहता है। तुम फुलमतिया जी को हीरों का हार देने के बजाय कोई कार क्यों नहीं गिफ़्ट कर देते?”

खदेरन ने अपनी परेशानी बताई, “फाटक बाबू! ऐसी कार कहां से लेकर आऊं जो हो तो नकली पर दिखने में बिलकुल असली जैसी लगे!”

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

जल्दी में

खदेरन जल्दी में था।

फुलमतिया जी के आदेश का पालन करते हुए, जल्दी से पनीर लाना था।

उसने ऑटो रिक्शा पकड़ा और उसे जल्द से जल्द पनीर की दूकान चलने को बोला।

दूकान के सामने ऑटो रोककर ऑटोवाला बोला, “सॉरी सर! जल्दबाज़ी में मीटर ऑन करना ही भूल गया।”

खदेरन ने अपनी जेबें टटोली और बोला, “कोई बात नहीं यार! मैं भी जल्दबाज़ी में पर्स लाना भूल गया। चल वापस जहां से आए थे। वहां चल कर तू मीटर ऑन कर लेना, मैं पैसे ले लूंगा।”

गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

एक लघु नाटिका : आदर्श जोड़ा

एक मात्र दृश्य

मंच पर दो पात्र। धीमा प्रकाश जो धीरे-धीरे तेज़ होता जाता है।

आदर्श प्रेमी :: (घुटनों पर खड़ा होकर, दोनों हाथ आकाश की ओर उठा कर, सामने खड़ी प्रेमिका से)

हे प्रिये! तुम्हारी सुन्दरता, तुम्हारी सरलता, और तुम्हारी सादगी हमें एक आदर्श प्रेमी जोड़ा बनाते हैं।

आदर्श प्रेमिका :: (आदर्श प्रेमी का हाथ अपने हाथ में लेकर, आसमान की ओर देखते हुए)

हां प्रिये! तुम्हारी सम्पत्ति, तुम्हारा रसुख और तुम्हारा बैंक बैलेन्स भी इसमें पूरा सहयोग देते हैं।

पटाक्षेप

बुधवार, 20 अप्रैल 2011

जानवर

images (26)भगावन एक दिन बुरा सा मुंह बना कर घर लौटा।

मम्मी फुलमतिया जी ने पूछा, “क्या हुआ बेटा? तेरा मुंह क्यों उतरा हुआ है?”

भगावन ने एक तरफ़ अपना बस्ता पटकते हुए कहा, “कुछ नहीं।”

फुलमतिया जी को लगा कुछ गड़बड़ ज़रूर है, “अरे! बता तो सही।”

“मम्मी मैं कल से स्कूल नहीं जाऊंगा।” भगावन ने घोषणा की।

New Picture (2)“क्यों?” फुलमतिया जी थोड़े विस्मय से पूछीं।

भगावन ने बताया, “मेरी टीचर मिसस मैना बहुत ही गंदी है। मेरे Home Work को देख कर बोली तू तो किसी जानवर की औलाद है।”

अभी तक तटस्थ भाव से मां-बेटे के वार्तालाप को सुन रहा खदेरन ने बेटे में हौसला जगाने के उद्देश्य से कहा, “ओए पुत्तर! फ़िकर मत कर …! तू तो शेर का बेटा है, शेर का!!”

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

स्वर्ग

फुलमतिया कोई किताब पढ रही थीं। पढते-पढते कुछ हाथ लगा। चहकते हुए बोलीं, “देखो इस किताब में लिखा है कि स्वर्ग में पति-पत्नी को अलग-अलग रखा जाता है।”

खदेरन ने निर्विकार भाव से कहा,“इसलिए तो उसे स्वर्ग कहा जाता है!”

गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

तीन पेड़

खदेरन आज फिर अपानी मंडली पहुंच गया। बुझावन पेग पे पेग दिए जा रहा था। खदेरन उसे समझा रहा था। पर वो  मान ही नहीं रहा था।

खदेरन ने कहा, “अब बस कर बुझावन! घर भी जाना है कि नहीं?”

बुझावन बोला, “आज तब तक  पिएंगे … तब तक पिएंगे … जब तक कि सामने वाले तीन पेड़ छह न दिखने लगे।”

खदेरन ने सामने की ओर देखा और चिल्लाकर बोला, ‘अबे घोंचू! बस करो! सामने एक ही पेड़ है!!”

बुधवार, 13 अप्रैल 2011

हमेशा गुस्से में

आखिर फाटक बाबू ने खदेरन से पूछ ही दिया, “खदेरन, तुम्हारी बीवी, फुलमतिया जी, हमेशा इतना गुस्सा में ही क्यों रहती है?”

खदेरन ने आंहें भरते हुए कहा, “क्या बताऊं फाटक बाबू, तब मेरी नई-नई शादी हुई थी। मैंने ग़लती से फुलमतिया जी को बोला था कि गुस्से में भी आप कितनी खूबसूरत लगती हैं … बस .. तब से वो खूबसरती दिखाने का कोई मौक़ा नहीं चूकतीं।”