भगावन की परीक्षा सर पर आ गई थी।
खदेरन ने कहा, “आओ बेटा भगावन! मैं तुम्हारी परीक्षा की तैयारी में हेल्प कर देता हूं।”
भगावन ने जवाब दिया, “नहीं पापा, रहने दीजिए। मैं बिना आपकी हेल्प के ही फेल होना चाहता हूं।”
खदेरन फुलमतिया जी मायके यानी अपनी ससुराल गया हुआ था।
भोजन करते वक़्त उसे एक विचित्र अनुभूति हुई। उसने अपने साले चटोरन से कहा, “यह तुम्हारा कुत्ता मुझे बहुत देर से घूर रहा है।”
चटोरन ने छूटते ही कहा, “जीजाजी आप जल्दी से खाना खा लीजिए, वो अपनी प्लेट पहचान गया है!”
चारो लॉन में बैठे थे।
फुलमतिया जी, खदेरन, फाटक बाबू और खंजन देवी।
बातचीत विभिन्न विषयों पर होता हुआ यात्रा और गर्मी पर आ गयी।
खंजन देवी, “इतनी गर्मी पड़ रही है, मन करता है किसी ठंडी जगह घूम आते।”
खदेरन ने कहा, “मैं लंदन जाने की सोच रहा हूं।”
फाटक बाबू सतर्क हुए। बोले, “खदेरन! वहां जाने में तो बहुत पैसा ख़र्च होगा।”
फुलमतिया जी ने व्यंग्य कसा, “सोचने में पैसे ख़र्च नहीं न होते फाटक बाबू!”
फुलमतिया जी जब पहलीबार मां बनीं थी तब का वाकया है। उस समय वो मैके में थीं। खदेरन अपने घर पर।
मैके से बेटे भगावन के साथ लौटते ही खदेरन की खैर-खबर ले रहीं थी। उनका गुस्सा सातवें आसमान पर था। इस चीख-पुकार को सुनकर भागी-भागी खंजन देवी वहां पहुंच गईं। उन्होंने फुलमतिया जी से पूछा, “आप खदेरन पर इतना बिगड़ क्यों रहीं हैं?”
फुलमतिया जी ने गुस्से में कहा, “एक तो अपनी व्यस्तता का बहाना कर यह न मेरे मैके आया न ही अस्पताल गया और जब मैंने अस्पताल से एस.एम.एस. कर इसे बताया कि ‘तुम बाप बन गए हो’ तो इसने उस मैसेज को अपने सारे दोस्तों को फॉरवार्ड कर दिया!”
फाटक बाबू और खदेरन एक दिन के अवकाश पर थे।
फुलमतिया जी और खंजन देवी दोनों बाहर गई थीं।
खदेरन ने फाटक बाबू के सामने प्रस्ताव रखा कि कहीं चलकर घूमा जाए। प्रस्ताव पसंद आया। तय यह हुआ कि एक रात किसी सूनी जगह पर चलकर बिताया जाए।
दोनों यात्रा पर निकल लिए। साथ में टेंट भी ले गए थे। सुनसान रास्ता था। काफ़ी देर और दूर चलने के बाद रात हो गई। एक जगह टेंट लगाया और सो गए।
कुछ देर के बाद जब फाटक बाबू की आंख खुली तो उन्होंने खदेरन से पूछा, “ तुम्हें कुछ दिख रहा है खदेरन!”
“हां फाटक बाबू!” खदेरन ने आकाश की ओर देखते हुए कहा, “बहुत साफ़! सुंदर! स्पष्ट! नीला आसमान! ध्रुव तारा। रोहिणी नक्षत्र! अहा, कितना सुहावना दृश्य!”
फाटक बाबू ने झुंझलाए स्वर में कहा, “बस-बस रहने दो! अब ज़्यादा मत बको! तुम्हे वह नहीं दिख रहा जो दिखना चाहिए।”
खदेरन परेशान हुआ, “क्यों? क्या हुआ? आपको क्या दिख रहा है? आप क्या देख रहे हैं?”
फाटक बाबू ने बताया, “कोई हमारा टेंट ले गया है। इसीलिए तुम्हें यह सब दिख रहा है … और तुम्हें वह नहीं दिख रहा जो दिखना चाहिए …!”
फुलमतिया जी, आपको तो मालूम ही है यदा कदा खदेरन का इम्तहान लेती रहती हैं।
आज भी इसी उद्देश्य से उन्होंने खदेरन से कहा, “जानू! तुम एक लाइन में कुछ ऐसा बोलो कि मैं ख़ुश हो जाऊं और जल जाऊं!”
हुक्म की तामील करते हुए खदेरन ने कहा, “जान, आप मेरी ज़िन्दगी हैं, और … और … और … लानत है, ऐसी ज़िन्दगी पर!”
इंटरनेट पर सक्रिय लोगों को यह चाटवाला ठेला ज़रूर पसंद आएगा … पर खाने के लिए जाने के पहले नीचे का विज्ञापन देखना न भूलें….!
भगावन ने अपने क्लास के दोस्त बुधना से कहा, “चलो यार रेस लगाते हैं। जो हारेगा वह आइस क्रीम खिलाएगा।”
बुधना ने कहा, “चल ठीक है। पर कहां तक जाना होगा।”
भगावन ने कहा, “बस यहां से कम्बाइन्ड बिल्डिंग तक।”
बुधना ने अपनी परेशानी ज़ाहिर की, “मुझे कम्बाइन्ड बिल्डिंग का रास्ता नहीं पता।”
भगावन ने कहा, “कोई बात नहीं, बस तू मेरे पीछे-पीछे रहना। पहुंच जाओगे कम्बाइन्ड बिल्डिंग।”
बुधना ने कहा, “थैन्क्स यार!”
‘वह’ बेचारा!
बेचारा ही तो था।
कल रात घर आ रहा था।
गटर में गिर गया।
किसी ने उसकी मदद की। मदद करने वाले ने उससे पूछा, ‘तुम इसमें कैसे गिरे?”
‘उसने’ बताया, ‘‘सब ग़लत संगति का असर है!”
मदद करने वाले के चेहरे पर मुस्कान तैर गई।
‘उसने’ देख लिए उस कुटिल मुस्कान को। बोला, “आप ग़लत समझ रहे हैं।”
मदद करने वाले ने प्रश्न किया, “मतलब?”
‘उसने’ बताया, “जो आप समझ रहे हैं वह बात नहीं है। बात ये है कि हम चार जने थे। अब देखिए ग़लत संगति का असर क्या होता है? हम चार दोस्तों में बोतल तो एक ही थी, पर वे तीनों एक दल के थे कमबख़्त! नहीं पीने वाले!!”
‘वह’ बेचारा!!!
‘वह’ वौर उसकी बीवी टैक्सी में चढ़े। नई-नई शादी हुई थी।
टैक्सी वाले ने ‘उससे’ पूछा, “कहां जाना है?”
‘उसने’ कहा, “हम हनीमून पर आए हैं। जहां-जहां घुमा सकते हो घुमा दो!”
टैक्सी वाले ने गाड़ी स्टार्ट किया। रियर व्यू मिरर एडजस्ट करने लगा।
‘उसको’ गुस्सा आ गया। चीखते हुए बोला, “शीशा एडजस्ट कर मेरी बीवी को देखता है। चल, पीछे बैठ, टैक्सी मैं चलाऊंगा।”
शोले का रिमेक बनाया जा रहा है। उसके निर्देशक जॉनी लीवर हैं।
अभी मुहूरत की शूटिंग है।
गब्बर बने हैं राजपाल यादव।
ठाकुर का रोल मिला है नाना पाटेकर को।
डायरेक्टर (जॉनी) ने राजपाल को समझाया। बहुत बार समझाने से उसे समझ में आया।
राजपाल बोला ‘‘सब सम… समझ गया।”
नाना को समझाया। नाना बोला, “मुझे मत समझा। इस ठिंगू को ही समझा। मैं सब जानता हूं। तू अपने काम से मतलब रख।”
जॉनी ने ‘लाइट, कैमरा, एक्शन कहा … फ़िल्म रॉल हुई और शूटिंग शुरु।
कई बार के रिटेक पर राजपाल इतना बोल पाया …
गब्बर (राजपाल)—“ये हाथ मुझे दे-दे ठाकुर!”
(पहले से ही झुंझलाए नाना) ठाकुर : ले-ले, मेरे भी ले-ले, कालिया के भी ले-ले, बासन्ती के भी ले-ले, जी न भरे तो जय और वीरू के भी ले-ले, एक से तो काम चलेगा नहीं तेरा दस-दस ले-ले और बन जा दस हाथों वाला राक्षस।
हास्यफुहार-401
ओ…मा मारा गया!
समाचार वाचन के समय बैकग्राउंड में ऑपरेशन का विडियो चल रहा था। जब यह समाचार “ओ…मा मारा गया!” सुनाया जा रहा था तो बीच वाले अक्षर के वाचन के समय बैक ग्राउंड में गोली चलने से सुनाई नहीं दिया कि बीच का अक्षर क्या है?
आगे का समाचार था .. “वहां से एक दस्तावेज़ हाथ लगा है, जिस पर कुछ कोड लिखे हैं और हमारे खुफ़िया तंत्र ने उसके फ़ुल्ल फ़ॉर्म ढ़ूंढ़ निकाले हैं। वे ये हैं …
JEE – जेहादिक इंट्रेंस एक्ज़ामिनेशन (द्वारा सीखिए) MBA – मास्टर ऑफ बौम्बिंग एड्मिनिस्ट्रेशन
IIT – इंटरनेशनल इन्स्टीच्यूट ऑफ टेरोरिज़्म (दे रहा है डिग्री) M Tech – मास्टर्स इन टेरर टेक्नॉलॉजी
IIM – इंस्टीच्यूट ऑफ इनफ़िल्ट्रेशन मैनेजमेंट (की विशेष उपलब्धि) IAS – इराक़ आफ़्टर सद्दाम
CAT – कैरियर इन अल-क़ायदा एंड तालिबान (से हासिल कीजिए) MBBS – मास्टर ऑफ बौम्ब स्ट्रेटेजिज़
GATE – जेनरल ऐप्टीट्यूड इन टेरर एंड एक्स्ट्रीमिज़्म (का मुख्य पाठ्यक्रम) BDMS – बौम्ब धमाका एट मास स्केल
TOEFL – टेस्ट ऑफ एक्स्ट्रीमिस्ट फॉरेन लैन्गुएजेज़ (से बनिए) GRE – ग्रैजुएट इन रिलोकेशन एक्स्ट्रीमिज़्म
चार सौवां हास्यफुहार!!
बात आज से सौ साल बाद की है।
स्कूल के सिलेबस में गब्बर सिंह की पढ़ाई होने लगी।
कक्षा के शिक्षक ने बात को इंटरेस्टिंग बनाने के लिए कहाना शुरु किया … “आज हम चर्चा करेंगे महान आत्मा महाशय गब्बर सिंह के जन्म की। जब वे इस दुनियां में पधारे अर्थात जब उनका जन्म हुआ तो वे रो नही रहे थे, हंस रहे थे … ऐसे हे हे हे हे ….”
सारा क्लास ‘हे-हे-हे-हे’ कर हंसने लगा!
शिक्षक आगे बोला, “फिर गब्बर सिंह के मुंह से कुछ शब्द निकले। इसे सुनते ही उनकी माता जी ने उन्हें ज़ोर से थप्पड़ मारा ….”
क्लास में सन्नाटा!
शिक्षक का प्रश्न, ‘‘कोई बता सकता है मां ने थप्पड़ क्यों मारा?”
किसी ने कोई जवाब नहीं दिया तो शिक्षक ने बताया, “गब्बर सिंह ने जन्म लेते ही मां से पूछा था ‘कितने आदमी थे?’”
फाटक बाबू और खदेरन मॉर्निन्ग वाक पर थे। एक जोड़ा सामने से गुज़रा। खदेरन ने उन्हें देखा। उसके मन में एक ख़्याल आया। वह फाटक बाबू से बोला,“फाटक बाबू! जब भी मैं ऐसा कोई जोड़ा देखता हूं तो मेरे मन में एक प्रश्न बार-बार आता है।”
फाटक बाबू ने पूछा, “कैसा जोड़ा?”
खदेरन ने बताया, “वो देखिए न सामने। मियां सिक्सटीज़ में, बीवी टीन्स!”
‘‘अरे खदेरन!” फाटक बाबू ने खदेरन को समझाया, “कुछ तो खूबी देख कर ही चुनती होंगी न”
“मुझे तो कोई कारण समझ में नहीं आता। इतनी खूबसूरत, शोडषी क्यों बुड्ढे से शादी कर लेती है। आप को अगर कोई दो कारण भी मालूम हो तो बताइए।” खदेरन ने चैलेंज दे दिया।
फाटक बाबू बोले, “वेरी सिम्पल! एक तो ‘इनकम’ और दूसरा ‘दिन कम’!”
वहां स्वस्थ्य की चर्चा चल रही थी।
खदेरन भी उपस्थित था।
सभा के संचालनकर्ता ने पूछा, “वह कौन सा भोजन है जो खाने के वर्षों बाद भी हमारा पीछा नहीं छोड़ता, हमें दुख-तकलीफ़ ही देता है?”
सारे सभागार में एक चुप्पी छा गई।
खदेरन ने चुप्पी तोड़ी। बोला, “'Wedding Cake'....”!!!
फाटक बाबू और खदेरन एक संत का व्याख्यान सुन कर घर लौट रहे थे। रास्ते में उस सभा में दिए गए आख्यान और उपदेश, जो उनके दिमाग पर अब भी छाया हुआ था, की चर्चा भी वे आपसे में करते जा रहे थे। संत महोदय ने मनुष्य के कर्म और अगले जन्म से संबंधित विषय पर बहुत ही रोचक बातें बताई थी।
फाटक बाबू ने खदेरन से पूछ दिया, “खदेरन! तुम अगले जन्म में क्या बनना पसन्द करोगे?”
खदेरन ने जवाब दिया, “फाटक बाबू! मैं तो कौकरॉच बनना चाहूंगा।”
फाटक बाबू को खदेरन के जवाब से आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूछा, “क्यों?”
खदेरन ने बताया, “फाटक बाबू, मेरी पत्नी फुलमतिया जी सिर्फ़ कौकरॉच से ही डरती है!”
इस चित्र को देखें। कुछ मन में आए तो कहें ….
एक शीर्षक हमारी तरफ़ से …
सो जाते हैं फुटपाथ पर अख़बार बिछाकर
मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाते!