चारो लॉन में बैठे थे।
फुलमतिया जी, खदेरन, फाटक बाबू और खंजन देवी।
बातचीत विभिन्न विषयों पर होता हुआ यात्रा और गर्मी पर आ गयी।
खंजन देवी, “इतनी गर्मी पड़ रही है, मन करता है किसी ठंडी जगह घूम आते।”
खदेरन ने कहा, “मैं लंदन जाने की सोच रहा हूं।”
फाटक बाबू सतर्क हुए। बोले, “खदेरन! वहां जाने में तो बहुत पैसा ख़र्च होगा।”
फुलमतिया जी ने व्यंग्य कसा, “सोचने में पैसे ख़र्च नहीं न होते फाटक बाबू!”
सोचने में क्या हर्जा है जी।
जवाब देंहटाएंmajedaar hai
जवाब देंहटाएंकमाल की रफ़्तार है सोच की!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब।
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हंसते रहो भाई, हंसाने वाला आ गया।
अब क्या दोगे प्यार की परिभाषा?
मज़ेदार सोच..!
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा ...
अच्छा है बहुत अच्छा है .काश सोचने ,बोलने ,पे पैसे खर्च होते तो हर आदमी पहले तौलता फिर बोलता .
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