किताबे ग़म में ख़ुशी का ठिकाना ढ़ूंढ़ो, अगर जीना है तो हंसी का बहाना ढ़ूंढ़ो।
इस चित्र को देखें। कुछ मन में आए तो कहें ….
एक शीर्षक हमारी तरफ़ से …
सो जाते हैं फुटपाथ पर अख़बार बिछाकर
मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाते!
पूस की रात भी नहीं न हल्कू खेत की रखवाली पर है पर थककर आराम करने का वक्त है | सोने दो | --- अमरनाथ मधुर
मेहनशकशों को स्वाभाविक नींद आ जाती है।
ye natural neend hai.बहुत सुन्दर लिखा आपने. बधाई.आपका स्वागत है.दुनाली चलने की ख्वाहिश...तीखा तड़का कौन किसका नेता?
स्वेद बहाने वाले कब बिछौने तलाशते हैं श्रमिक कहीं भी चैन से सो जाते हैं
मित्रता!!
तस्वीर खुद बोल रही है, हम क्या बोलों.
मानव और मानवेतर प्राणी के बीच का नैसर्गिक प्रेम....
पूस की रात भी नहीं न हल्कू खेत की रखवाली पर है पर थककर आराम करने का वक्त है | सोने दो |
जवाब देंहटाएं--- अमरनाथ मधुर
मेहनशकशों को स्वाभाविक नींद आ जाती है।
जवाब देंहटाएंye natural neend hai.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा आपने. बधाई.
आपका स्वागत है.
दुनाली चलने की ख्वाहिश...
तीखा तड़का कौन किसका नेता?
स्वेद बहाने वाले कब बिछौने तलाशते हैं
जवाब देंहटाएंश्रमिक कहीं भी चैन से सो जाते हैं
मित्रता!!
जवाब देंहटाएंतस्वीर खुद बोल रही है, हम क्या बोलों.
जवाब देंहटाएंमानव और मानवेतर प्राणी के बीच का नैसर्गिक प्रेम....
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