वहां स्वस्थ्य की चर्चा चल रही थी।
खदेरन भी उपस्थित था।
सभा के संचालनकर्ता ने पूछा, “वह कौन सा भोजन है जो खाने के वर्षों बाद भी हमारा पीछा नहीं छोड़ता, हमें दुख-तकलीफ़ ही देता है?”
सारे सभागार में एक चुप्पी छा गई।
खदेरन ने चुप्पी तोड़ी। बोला, “'Wedding Cake'....”!!!
अच्छा है हमने केक नहीं काटा :)
जवाब देंहटाएंमज़ेदार!
जवाब देंहटाएंबढ़िया केक है!
जो खाए सो पछताय, जो न खाए वो भी पछताए!!
ha ha ha .....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब. हा हा हा हा
जवाब देंहटाएंसुबह सुबह हंसाने के लिए शुक्रिया. आशा है कि दिन अच्छा गुजरेगा.
दुनाली पर स्वागत है-
ना चाहकर भी
वाह, कभी नहीं पीछा छोड़ता है।
जवाब देंहटाएंवाह सही कहा ।
जवाब देंहटाएं..........बहुत खूब मज़ेदार
जवाब देंहटाएंजी आपके ब्लाग पर पहली बार आया हूं। सच में भारी भरकम शब्दों से सजे लेख, गजल और कविताएं पढने के बाद थोड़ा हंसने का मन भी हो रहा था। जो आपके ब्लाग ने पूरा कर दिया।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना... हाहहाहाहहाहहाहाहा
हम तो एन्जॉय करते हैं.. केक पाना और खाना दोनों!!
जवाब देंहटाएं(पत्नी बगल में हैं इसलिए ऐसा लिखना पड़ रहा है)
-सलिल
ha ha ha majedar hai
जवाब देंहटाएंसच ही तो कहा है खदेरन ने...!!
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