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बुधवार, 17 नवंबर 2010

कबाड़ी

एक बार फुलमतिया जी और खदेरन एक रेस्तरां में बैठे खाना खा रहे थे।

खाने के बीच में फुलमतिया जी बोलीं, “देखो, उधर कोने वाली कुर्सी पर बैठा आदमी तुम्हें घूर रहा है।’

खदेरन बोला, “तो उसे घूरने दो ना।”

फुलमतिया जी बोलीं, “मैं उसे जानती हूं।”

खदेरन, “अच्छा! कौन है?”

फुलमतिया जी, “कबड़ी है। हमेशा बेकार की चीज़ों मे दिलचस्पी लेता है।”

14 टिप्‍पणियां:

  1. दोनों घर में झगड़े होंगे.... चालाक फुलमतिया :))

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  2. कबाड़ी मत कहिए भाभी जी! पुरातत्ववेत्ता कहिए!!

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  3. फुलमतिया का अंदाजे बयां लाजवाब है ।
    कुछ कहे बिना सब कह दिया ,
    और वो सोचते रहे क्या कह दिया गया ॥

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  4. हा हा हा ………सही तो कह रही है।

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  5. खदेरन और फ़ुलमतिया---नोक झोंक पढ़ कर मजा आ रहा है।

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