फिर जमी थी महफ़िल, यारों की। खदेरन को भी बुलावा था, सो वह भी पहुंच गया। सुबह से उसे काफ़ी खांसी हो रही थी। जब यार-दोस्तो नें पीने का ऑफ़र दिया तो खदेरन ने कहा, “यार मैं नहीं पी पाऊंगा। बहुत खांसी हो रही है।”
सुखारी ने कहा, “ईज़ी यार, सब चला जाएगा?”
खदेरन को यक़ीन नहीं हुआ और बड़े भोलेपन से उसने पूछा, “क्या शराब पीने से खांसी जाती है?”
जलावन सिंह ने बताया, “क्यों नहीं जाएगी? जब मेरा घर, खेत, पैसा,
सब कुछ चला गया तो तेरी खांसी क्या चीज़ है।”
आजकल मुझे भी खांसी आ रही है
जवाब देंहटाएंha ha ha ha .......
जवाब देंहटाएंHow nice!!! :))
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंसब कुछ ही चला जाता है इससे।
जवाब देंहटाएंwonder ful dawai
जवाब देंहटाएंkhatarnak dawa hai ye to
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही बात कही.जलावन सिंह की जय हो :)
जवाब देंहटाएंवाह, क्या भोलापन है, सवाल जवाब में।
जवाब देंहटाएंवाह,क्या बात है ! पढ़ कर आनंद आ गया !
जवाब देंहटाएं-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
बहुत अच्छा व्यंग .....
जवाब देंहटाएंमुझे तो और भी जाने क्या क्या आ रहा है हा हा ....
जवाब देंहटाएंसचमुच सब चला जाता है!!
जवाब देंहटाएंमज़ेदार।
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा....
सही .... बिलकुल सही ....
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