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मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

अलार्म घड़ी

सुबह-सुबह खदेरन को जगा देख फाटक बाबू ने पूछ ही लिया, “क्या खदेरन आज एकदम भोरे-भोर उठ गए?”

“हां, आज बहुत दिनों के बाद अलार्म घड़ी से मेरी आंख खुली।” खदेरन ने बताया।

फाटक बाबू को समझ में नहीं आया तो पूछे, “वो कैसे?”

खदेरन ने राज खोला, “फुलमतिया जी ने उसे मेरे सिर पर फेंक मारा ना!”

10 टिप्‍पणियां:

  1. उठ गया खदेरन... घड़ी की हालत तो देखो ....!

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  2. खदेरन!ज्यादा चोट तो नहीं लगी न :)

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  3. फुलमतिया जी प्रेम से फूल(दान) भी तो मारती हैं. अच्छा लगा.

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