परिभाषा-5
----पत्नी----
जो पति के सामने रहे तनी।
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बेलन महिमा के द्वारा केवल हास्य का सृजन करना उद्देश्य था ताकि हम नये वर्ष का हंसते हुए स्वागत करें। आप सब का नया साल मंगलमय हो ... हंसी और हंसी-ख़ुशी से 2010 भरा रहे !!!! इसी कामना के साथ .....
सम्पूर्ण बेलन महिमा
कल्ब की पार्टी से
देर रात गए जब दम्पत्ति घर पधारे,
इससे पहले कि बालम अपने जूते कपड़े उतारे,
श्रीमतीजी का प्रश्न आया,
“तुमने मिसेज वर्मा की नई साड़ी देखी?”
श्रीमानजी ने कहा “नहीं।”
“इनके” इस उत्तर ने “उनका” दिल तोड़ा
फिर भी “उन्होंने” दूसरा प्रश्न छोड़ा,
“अच्छा सच-सच कहना
मिसेज घोष ने जो पहन रखा था
लेटेस्ट डिजाइन वाला सोने का गहना ?
उस पर तो तुम्हारी नज़र गई होगी ?”
बलमजी अपनी याददाश्त को टटोले,
और बोले
“ नहीं।”
दूल्हे के इस उत्तर पर कुछ भ्रमित और चकित
दुल्हन ने तीसरे प्रश्न का तीर छोड़ा
“हूँ, पर मिसेज दास के
ख़ूबसूरत हीरों का नेकलेस तो ज़रूर देखा होगा?”
वर ने फिर कहा “ नहीं।”
अब उनकी संगिनी के सब्र का बांध टूट चुका था,
पति का उत्तर सुनते ही पत्नी बिगड़ गई
मन ही मन सोची
किस बेवकूफ के पल्ले पड़ गई।
फिर बोली,
``तो क्या पार्टियों में तुम सिर्फ खाने-पीने के लिए ही जाते हो ?
गहने, जेवर और कपड़ों का
अच्छा-अच्छा आइडिया घर नहीं लाते हो।``
पैर पटकते हुए वो तो चली गई।
अधिपति को लगा उनसे कुछ चूक तो हो ही गई।
नाथ की इस नादानी पर
कल न जाने सितम क्या होगा
अब आप समझ ही सकते हैं कि जब रात हो ऐसी मतवाली
फिर सुबह का आलम क्या होगा?
खैर इस मधुर- मधुर वार्तालाप के बाद
मन में एक हलचल लिए
अधिप भी सोने चल दिए।
सुबह देर तक सोये रहे।
मृगनयनी द्वारा झकझोड़े जाने पर आँखें खुलीं,
तो देखा उनके हाथ में चाय के प्याले की जगह
दूध का गिलास है।
मालिक ने उत्सुकता से पूछा,
“क्या आज कोई व्रत, पर्व या उपवास है।?”
धर्मपत्नी जी इठलाईं
अपना मधुर तेवर दिखलाईं
बोलीं, - “हाँ, आज नगपंचमी है।”
स्वामी ने सोचा – “दिमाग क्या तेज़ चला रही है
मुझे ही नाग बता रही है।”
हाज़िरजवाबी में तो
भार्या हैं लाजवाब,
रखती कुछ भी नहीं बकाया,
तुरत ही चुका देती हैं सारा हिसाब
शिकायत के लहजे में कंत ने उस दिन कहा था
“क्या इतना भी हमें समझ नहीं आता
कि हमारा कोई भी रिश्तेदार
तुम्हें फूटी नज़र नहीं भाता।”
तो झट से बोलीं थीं कांता
“ करो मुझ पर पूरा-पूरा विश्वास
अपनी सास से ज़्यादा
मुझे अच्छी लगती है तुम्हारी सास।”
खैर, ऐसी हाज़िरजवाब वो तो चली गईं।
और कांत भी क्यों लगे डरने
सामने अख़बार पड़ा था
लेकर बैठ गये पढ़ने।
एक आलेख ने प्राणेश्वर को ललकारा
उन्होंने अपनी प्राणेश्वरी को पुकारा
कहा, “सुनो तुम हमेशा मुझे कोसती हो
कि मेरे पास दिमाग नहीं है
यह देखो अख़बार में लिखा है
पुरुषों के दिमाग
औरतों से ज़्यादा तेज होता है।”
अर्द्धांगिनी बोलीं, “तुम अब भी
अपने दिमाग से काम नहीं ले रहे हो
अख़बार में जो लिखा है, पढ़ कर वही बोल रहे हो।”
स्वामी की समझ में नहीं आ रहा था
कि क्या लफड़ा है
पूछे – “क्या बात है
क्यों तुम्हारा मूड सुबह-सुबह ही उखड़ा है”
गृहस्वामिनी उन पर चिल्लाईं
चिरपरिचित अपना रौद्र रूप दिखलाईं
बोलीं, “नींद में रात तुम बहुत बड़-बड़ कर रहे थे,
डर रहे थे, -
या कि मुझसे लड़ रहे थे।”
अच्छा तो ये धमाल है
कांत के नींद में आए सपने का कमाल है।
तभी तो सुबह-सुबह उठा ये बवाल है।
ख़सम ने भी गुस्से में कहा,
“बस बहुत सहा
ज़िन्दगी भर क्या यूँ ही सिर धुनता रहूँ
और सपने में भी
तुम्हारी ही सुनता रहूँ”
जगे में तो बोलने का
मुँह खोलने का
अवसर ही कहां मिलता है।
बात आगे बढ़ी,
वामांगिनी की त्योरी चढ़ी,
अंदर का क्रोध जगा,
और उनके हाथ का बेलन उत्तमांग के सिर पर लगा।
घर की कलह और ख़ाविंद के ख़ुद के गुस्से ने
प्रिय को पथ से भटकाया
आब देखा ना ताब
पंखे से रस्सी का फंदा लटकाया
स्टूल पर चढ़ उसे गले में डालने के लिए हो गये तैयार
तभी प्रिया की आई ज़ोर से फटकार
“मरना है तो मरो
पर, जो भी करना है ज़ल्दी करो”
घरवाला बोला, - “पता नहीं इस घर में शांति कब होगी
तुम मुझे चैन से मरने भी नहीं दोगी”।
घरवाली बोलीं, - “कोई भी काम ढ़ंग से तो करते नहीं
उल्टे मुझ पर अकड़ रहे हो
रस्सी को गले की जगह हाथ में जकड़ रहे हो
और बंदरों की तरह हवा में खड़े हो
तुम्हारी नहीं
जिस स्टूल पर तुम चढ़े हो
उसकी मुझे ज़रूरत है।
सारा सामान इधर-उधर बिखरा पड़ा है।
और ये शो केश भी फलतू चीज़ों से भरा है।
तुमसे तो कुछ होगा नहीं
मुझे ही यह ड्राईंग रूम सजाना है।
कल मेहमान आने वाले हैं
आलतू-फालतू चीज़ों को यहां से हटाना है”।
सहचर ने स्टूल सहचरी की ओर बढ़ाया,
और आगे के दो घंटे उनके काम में हाथ बंटाया।
साजन के इस व्यवहार ने सजनी के मन को छुआ
इस तरह घर का मामला शांत हुआ
देर भी काफी हो चुकी थी
दिन के दो बजा था
और घर में खाना भी नहीं बना था।
इसलिए होटल में खाने का ख्याल आया
प्राणधन का यह प्रस्ताव परिणीता को बहुत भाया
होटल में खाने उपरांत मलकिनी अपना मुंह खोलीं
और सौंफ चबाते हुए बड़े प्यार से बोलीं,
“अगर रोज़ इसी तरह खाना बाहर खिलाया जाए
तो घर में बेलन रखने की नौबत ही क्यों आए?
घर में बेलन रखने की नौबत ही क्यों आए?
घर में बेलन रखने की नौबत ही क्यों आए?”