फुलमतिया जी खदेरन में आए व्यवहार परिवर्तन से मन ही मन दुखी थीं। पर वो बोलने में संकोच कर रही थीं। उन्हें उसका रूखा-रूखा व्यवहार हरदम सालता रहता था। जब मामला हद से गुज़रने लगा तो एक दिन बोल ही पड़ीं, “क्या तुम मुझे प्यार करते हो?”
खदेरन पहले तो इस प्रश्न से चौंका, फिर बिना कोई पंगा लिए बोला, “हां!”
फुलमतिया जी उसके इस उत्तर से असंतुष्ट हो रूठे स्वर में बोलीं, “लेकिन तुम्हें तो मेरी कोई परवाह ही नहीं है।”
खदेरन तपाक से बोला, “ओए जानेमन! प्यार करनेवाले किसी की परवाह नहीं करते!”
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क्या बात है खदेरन की. खदेड़ कर रख दिया. बुहत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंभगवान बचाए ऐसे प्रेमी प्रेमिका से
जवाब देंहटाएंहा हा!! बहुत सही जवाब दिया है खदेरन ने ..
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंबाह...!
जवाब देंहटाएंऔर क्या!! :) मस्त!
जवाब देंहटाएं:):)
जवाब देंहटाएंवाह , जवाब सटीक है
चित भी मेरी पट भी मेरी !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, क्या जबाब है।
जवाब देंहटाएं:-)
जवाब देंहटाएंवाकई प्यार करनेवाले किसी की परवाह नहीं करते! ;-)
........बहुत खूब,
जवाब देंहटाएंबहुत बढियां......इसे कहते हैं हाजिर जवाबी ,,,,,,,ही ही ही.............
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंbhagavan aise pyar se bachaye
जवाब देंहटाएंहा,,,हा,,हा,,
जवाब देंहटाएंसही तो कहा खदेरन ने :)
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंसमझ का फेर, राजभाषा हिन्दी पर संगीता स्वरूप की लघुकथा, पधारें
मज़ेदार!
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा....
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
और समय ठहर गया!
, ज्ञान चंद्र ‘मर्मज्ञ’, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
हा हा सच है ... उनकी भी नही जिससे प्यार हो ...
जवाब देंहटाएंबहूत खूब ...........
जवाब देंहटाएंपर प्यार करने वाले को अपने प्यार की परवाह तो करनी चाहिए । फूलमतिया का तो दिल टूट गया होगा, खदेरन को ऐसा नहीं कहना चाहिए :-)
खदेरन तपाक से बोला, “ओए जानेमन! प्यार करनेवाले किसी की परवाह नहीं करते!”
जवाब देंहटाएंहा हा हा……………सही तो कहा…………………मज़ा आ गया जवाब सुनकर्।
हाजिरजवाब...बहुत बढ़िया..
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