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मंगलवार, 16 नवंबर 2010

बात-चीत

अब फाटक बाबू क्यों नहीं परेशान हों खंजन देवी से। ज़रा दोनों की बात-चीत सुनिए….

“डिनर पर बाहर चलें?”

“हां”

“क्या खाओगी?”

“कुछ भी।”

“चाइनीज़?”

“नहीं, मुझे गैस हो जाता है।”

“साउथ इंडियन?”

“क्या फाटक बाबू परसों ही तो खाए थे।”

“तो .. फिर … नॉन भेज?”

“अभी छठ के समय, आप भी न … पर्व त्योहार का भी ख्याल नहीं रखते।”

“तो रोटी-तड़का?”

“वही बोरिंग खाना…।”

“तो फिर तुम्ही बताओ…क्या खाना है?”

“कुछ भी।”

14 टिप्‍पणियां:

  1. भूषण जी के विकल्प से सहमत !
    कुछ नहीं से मतलब यही होता है ...हमारा तो !

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  2. कुछ नहीं से मतलब यही होता है ...हमारा तो !

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  3. हमारे घर में भी कुछ भी ही बनता है, बहुधा।

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  4. कुछ भी का मतलब यही होता है चाट पकोड़ा समोसे कचोरी पापडी

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. :):) ..वाणी जी कि बात में ज्यादा आनन्द आया ...कुछ भी से मतलब चाट पापडी से होता है .

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  7. ई फाटको बाबा न कभीकभी बेकूफी कर दएते हैं...देखिये केतनाआराम से भौजी बतिया को गोल घुमाकर फिनू ओही जगहवा पर ले आईं..अरे भाई गोल गोल रोटी का मनवा रहा होगा!!

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