तुम्हारा क्या कहना है? एक दिन शाम के वक़्त फाटक बाबू गार्डेन में आराम चेयर पर आधा बैठे और आधा लेटे चाय की चुस्कियों का मज़ा ले रहे थे। इतने में खंजन देवी आ गईं और उनके बगल में बैठ कर आहें भरने लगीं। फाटक बाबू को अपने में ही मस्त देख बोलीं, “शादी से पहले तो तुम पड़ोस की छत से कूद कर मुझसे मिलने आते थे। अब तो तुम्हारे दिल में मेरे लिए ज़रा भी प्यार नहीं रहा।” फाटक बाबू को कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते देख बोलीं, “तुम्हारा क्या कहना है?” फाटक बाबू ने कहा, “कहना क्या है! अब तो जी चाहता है, उसी छत से नीचे कूद जाऊँ!!” |
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जवाब देंहटाएंहा हा!! बहुत दया आ रही है फाटक बाबू पर.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
सबका एक जैसा हाल है।
जवाब देंहटाएंtoooo good .....Bechare fatak babu ???
जवाब देंहटाएंशुभ-कार्य में विलम्ब क्या फाटक बाबू... ? कल करे सो आज कर... आज करे से अब.... !!! लेकिन एक बात जान लीजिये, 'पाप के लिए प्रायश्चित है लेकिन बेवकूफी के लिए नहीं..! इस बार कूदने से पहले सोच जरूर लीजियेगा... !!! हा... हा... हा... हा.... !!!!!
जवाब देंहटाएंha ha ha ek din khanjan devi en sab ka gin kar badla lengi
जवाब देंहटाएंवाह री किस्मत. ये छत काहे को बनाई !!!!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबेचारे फाटक बाबू...
हा हा हा
जवाब देंहटाएंHi fatak babu ki fatkaar...
जवाब देंहटाएंaaye leke hasya fuhaar...
Deepak
मज़ेदार!
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा .....
छत इस काम भी आती है। आज ही पता चला।
जवाब देंहटाएं:)
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