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बुधवार, 28 जुलाई 2010

ज़ुर्म

हंसना ज़रूरी है, क्योंकि …

हंसने से चिंता, दुख, गुस्से, चिड़चिड़ेपन, आदि से निज़ात मिलती है।

ज़ुर्म


जज न्याय सिंह ने कठघरे में खड़े मुज़रिम ढिबरी दास से पूछा, “पिछली बार भी तुम 500 रुपए चुराने के ज़ुर्म में पकड़े गए थे?”

मुज़रिम चोर ढिबरी दास ने कहा, “हुज़ूर! 500 रुपए से कितने दिन काम चलाया जा सकता है?”

21 टिप्‍पणियां:

  1. सच तो है...हा हा, जज साहेब भी समझते नहीं.

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  2. मंहगाई बढ़ रही है। जज साहब क्या जाने। आखिर पांच सौ रुपये से सिर्फ खाना ही चल सकता है।

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  3. सही बात है भाई ... ५०० में तो आजकल एक दिन चलना मुश्किल है ...

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  4. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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  5. हा हा बिल्कुल सही बात है. जज को भी समझना चाहिए कि इस महंगाई के ज़माने में पांच सौ से क्या होता है और फिर करोडो डकारने वाले सांसद और नेता तो बिल्कुल खुले ही घूम रहे है.

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  6. हा..हा..हा..मजेदार.
    ________________________
    'पाखी की दुनिया ' में बारिश और रेनकोट...Rain-Rain go away..

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  7. sahi to kaha hai.... itni mahgaaee me 500 rupye me kitne din chalega... ha... ha... ha... ha... !

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  8. वाह जी....

    सुन्दर चुटकुला...

    दीपक....

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  9. बढ़िया चुटकुला...आपके पात्रों के नाम बड़े मजेदार और सटीक होते हैं.

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  10. हंसने-हंसाने का जो मुहिम आपने छेड़ा है...काबिलेतारीफ है

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  11. jaj or chor bhi jante hai ki mahgaii kitani hai sarkar kab janegi

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  12. मजेदार ! आपके ब्लॉग पर आकर मन प्रफुल्लित हो जाता है ,,,ठीक वैसे ही जैसे एक छींक आने से तबियत हरी हो जाती है ,,,,बहुत दिनों से ब्लॉग जगत से दूर रहा ,,,समय निकालकर पिछली रचनाये भी पढता हूँ ...;)

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