हंसना ज़रूरी है, क्यूंकि …हंसने से श्वसन तंत्र, पेट, पीठ और चेहरे की मांसपेशियां चुस्त-दुरुस्त रहती हैं। |
मारधाड़फुलमतिया जी से बार-बार निवेदन कर खदेरन उनको फ़िल्म दिखाने ले गया। सिनेमा हॉल में खदेरन को नींद आ गई। कुछ ही देर में वह खर्राटे भरने लगा। खर्राटे ले रहे पति को जगाते हुए फुलमतिया जी बोलीं, “इतनी अच्छी फ़िल्म चल रही है और तुम सो रहे हो?”खदेरन ने सफ़ाई देते हुए कहा, “क्या खाक अच्छी फ़िल्म है? जिस फ़िल्म में मारधाड़ न हो वह भी कोई फ़िल्म है?”फुलमतिया जी का तेवर चढा, बोलीं, “मारधाड़ ही चाहिए थी, तो घर पर बताते, यहां आने की क्या ज़रूरत थी!” |
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शनिवार, 31 जुलाई 2010
मारधाड़
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हाहाहाहा....लाख टके की बात है. .
जवाब देंहटाएंफुलमतिया जी कितनी समझदार हैं। खदेरन निरा अहमक, पहले बता देता तो पैसे भी बच जाते.मनोरंजन फ्री में होता सो अलग....अब ये न पूछना कि मनोरंजन किसका?
हाहाहाहा...
जवाब देंहटाएंहा हा!! वो तो फुलमतिया दिखा दी...
जवाब देंहटाएंमज़ेदार!
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा......
वाह..बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंसही बात है, हा हा हा हा।
जवाब देंहटाएंवाह..बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंसही है
जवाब देंहटाएंपैसे खर्च करने की क्या जरूरत थी
जे बात ...
जवाब देंहटाएंकई लोंग मार धाड़ से बचने के लिए घर से बाहर का और ब्लॉगिंग का रुख करते हैं ...:):)
बिचारा...जहां मौका मिला सो गया.
जवाब देंहटाएंkhaderan ji ki ab khair nahi fulamatiya ji ab pure jos me aa gaii hai ha ha ha
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंह ह हा।
…………..
प्रेतों के बीच घिरी अकेली लड़की।
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
मज़ेदार!
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा.....
बहुत बढिया!!:)
जवाब देंहटाएंखदेरन..
जवाब देंहटाएंफाटक बाबू...
खंजन देवी...
:)
एक तो आपके पात्रों के नाम ही इतने मजेदार होते हैं..की नाम पढ़ते ही मुस्कान आ जाती है..