हंसना ज़रूरी है, क्यूंकि …
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नापसंदखदेरन पर फुलमतिया जी बरस पड़ीं। उसकी कई ऐसी बातें थी जो फुलमतिया जी को अच्छी नहीं लगती थी। बहुत देर तक, बहुत कुछ सुनने के उपरांत खदेरन बोल पड़ा, “फुलमतिया जी! अब आप मुझे नापसंद करने लगी हैं।”फुलमतिया जी ने जवाब दिया, “अब नहीं, … मुझे तो तुम शुरु से ही नापसंद थे, ….”खदेरन को विश्वास नहीं हुआ, उसने पूछा, “क्या…?”फुलमतिया जी बोलीं, “हां, शुरु से, पर वो तो मेरी मां ने समझाया …..”खदेरन को उत्सुकता हुई, पूछा, “क्या समझाया था आपकी मां ने?”फुलमतिया जी ने बताया, “यही कि पति मुर्ख हो, तो ज़िन्दगी बड़े आसानी से कट जाती है!” |
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शुक्रवार, 30 जुलाई 2010
नापसंद
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हमारी फुलमतिया भी ऐसे ही आसानी से जिन्दगी काट रही है..हा हा!
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंHi..
जवाब देंहटाएंHaha.. Vaise jo murkh hota hai wohi PATI hota hai..
Deepak..
हा हा हा !! बहुत खूब ..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
:-) बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंhahahahehehehohoho
जवाब देंहटाएंपोस्ट पढ़कर तो बहुत जोर से हँसी आ रही है!
जवाब देंहटाएंहँसाने के लिए धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंha... ha... ha... ha... !!!
जवाब देंहटाएंहा हा हा ...बढ़िया है...
जवाब देंहटाएंमज़ेदार!
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा......
वाह, पर बात तो सच है।
जवाब देंहटाएंdhatt tere ki....main to sochtaa tha ki main aisa nahin hoon......
जवाब देंहटाएंMajedaar :)
जवाब देंहटाएं:):)
जवाब देंहटाएंaaj mila sher ko sawa sher ha ha ha
जवाब देंहटाएंहे भगवान......औह अब समझ में आया ऐश्ववर्या राय काफी तेज दिमाग हैं।
जवाब देंहटाएंहा..हा..हा..
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