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शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

नापसंद

हंसना ज़रूरी है, क्यूंकि …


हंसने से ख़ून में मौज़ूद कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा में कमी हो जाती है।

नापसंद


खदेरन पर फुलमतिया जी बरस पड़ीं। उसकी कई ऐसी बातें थी जो फुलमतिया जी को अच्छी नहीं लगती थी। बहुत देर तक, बहुत कुछ सुनने के उपरांत खदेरन बोल पड़ा, “फुलमतिया जी! अब आप मुझे नापसंद करने लगी हैं।”

फुलमतिया जी ने जवाब दिया, “अब नहीं, … मुझे तो तुम शुरु से ही नापसंद थे, ….”

खदेरन को विश्‍वास नहीं हुआ, उसने पूछा, “क्या…?”

फुलमतिया जी बोलीं, “हां, शुरु से, पर वो तो मेरी मां ने समझाया …..”

खदेरन को उत्सुकता हुई, पूछा, “क्या समझाया था आपकी मां ने?”

फुलमतिया जी ने बताया, “यही कि पति मुर्ख हो, तो ज़िन्दगी बड़े आसानी से कट जाती है!”

19 टिप्‍पणियां:

  1. हमारी फुलमतिया भी ऐसे ही आसानी से जिन्दगी काट रही है..हा हा!

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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  3. हे भगवान......औह अब समझ में आया ऐश्ववर्या राय काफी तेज दिमाग हैं।

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