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शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

फाटक बाबू और खदेरन का रिसर्च!!!

एक विज्ञान पर आधारित फ़िल्म फाटक बाबू और खदेरन देख आए। काफ़ी प्रभावित हुए। दोनों के मन में आया ‘क्यों न हम भी कुछ वैज्ञानिकों जैसा काम कर जाएं!’

खदेरन बोला, “फाटक बाबू इसके लिए तो पहले रिसर्च करना होगा!”

फाटक बाबू ने हामी भरी, “बिल्कुल!! चलो मेढक पकड़ लाओ! सब साइंस वाला तो वहीं से शुरु करता है।”

खदेरन राणा टिग्रिना पकड़ लाया। फाटक बाबू बोले, “मैं एक्स्पेरिमेंट करता हूं, तुम रिज़ल्ट नोट करते जाना, और फिर फाइनली कुछ निष्कर्ष निकाला जाएगा!”

खदेरन ने कहा, “ओ.क्के.!!”

फाटक बाबू ने मेढक की एक टांग काटी, और कहा, “कूदो!”

मेढक कूदा !

खदेरन ने नोट किया, “मेढक ३.५ फ़ीट कूदा!”

फाटक बाबू ने मेढक की दूसरी टांग काटी, और कहा, “कूदो!!”

मेढक कूदा!!

खदेरन ने नोट किया, “मेढक २.५ फ़ीट कूदा!”

फाटक बाबू ने मेढक की तीसरी टांग काटी, और कहा, “कूदो!!”

मेढक कूदा!!!

खदेरन ने नोट किया, “मेढक १.५ फ़ीट कूदा!”

फाटक बाबू ने मेढक की चौथी टांग काटी, और कहा, “कूदो!!”

मेढक नहीं कूदा …. !!!!

खदेरन ने चिल्लाकर कर रिज़ल्ट बताया, “जब मेढक की चौथी टांग काट दी जाती है, तो वह बहरा हो जाता है!!!”

फुलमतिया जी और खंजन देवी की ख़ुशी का ठिकाना न रहा!! चिला पड़ीं, “हैप्पी न्यू ईअर!!!”

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

खुशी के मारे…!

images (12)उस दिन खदेरन बाज़ार से घर लौट रहा था कि देखा हकलू दौड़ते हुए इधर से उधर भाग रहा है। फिर वह फ़ायर ब्रिगेड के दफ़्तर में घुस गया। खदेरन भी उसके पीछे वहां पहुंचा। देखता है कि सामने जो आदमी बैठा था उससे हकलू हांफते हुए बोल रहा था, “मेरी बीवी खो गई है।”

सामने बैठे सज्जन ने कहा, “यह पुलिस स्टेशन नहीं, फायर ब्रिगेड का ऑफिस है।”

हकलू चिल्लाते हुए बोला, “क्या करूं, क्या कहूं, कहां जाऊं, ख़ुशी के मारे कुछ सूझ ही नहीं रहा है!”

गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

फुलमतिया जी के प्रश्न खदेरन की परेशानी-4

खुलकर मुस्‍कुराना
फुलमतिया जी के ीनों प्रश्नों का उत्तर न दे सका था खदेरन। तो उसका हौसला बढाने के लिए फुलमतिया जी ने कहा, “कोई बात नहीं अब चौथे प्रश्न का उत्तर दो। जब खखोरन और उसके चारो भाइयों ने एक टैक्सी ले ली और  दिन भर सवारी की खोज में इधर-उधर घूमते रहे। उनकी टैक्सी चलते-चलते एक जगह रुक गई। स्टार्ट करने के लिए उन्हें मालूम था कि गाड़ी को धक्का देना पड़ता है। चारो भाई धक्का लगानी उतरे। पर टैक्सी अपनी जगह से नहीं हिली।  बोलो क्यों?”

images (4)खदेरन माथा खुजाने लगा। उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दे। उसने  हार मान ली तो फुलमतिया जी बोलीं, “वेरी सिम्प्ल! २ भाई आगे और २ भाई पीछे से धक्का लगा रहे थे .. हा. हा. हा..हा,…..!”

मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

अलार्म घड़ी

सुबह-सुबह खदेरन को जगा देख फाटक बाबू ने पूछ ही लिया, “क्या खदेरन आज एकदम भोरे-भोर उठ गए?”

“हां, आज बहुत दिनों के बाद अलार्म घड़ी से मेरी आंख खुली।” खदेरन ने बताया।

फाटक बाबू को समझ में नहीं आया तो पूछे, “वो कैसे?”

खदेरन ने राज खोला, “फुलमतिया जी ने उसे मेरे सिर पर फेंक मारा ना!”

सोमवार, 20 दिसंबर 2010

मेहनत करके

हल्कु पतलू से, “तुम तो जानते ही हो, कि मैं कितनी मेहनत करके नीचे से ऊपर आया हूं!”

पतलू, “हां-हां, क्यों नहीं! पहले तुम बूट पॉलिश किया करते थे, और अब तो सिर पर तेल मालिश करने लगे हो!!”images (10)

रविवार, 19 दिसंबर 2010

इस चित्र का शीर्षक क्या हो?

ऐसा शीर्षक बताइए जिससे हास्य का सृजन हो!

मेरा शीर्षक है …..

अबे …. स्सा …. ठहर तुझे बताता हूं ……!

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

अच्छा काम

195emp_thभगावन देर से स्कूल पहुंचा। उसकी क्लास टीचर मिस बुद्धिमती ने पूछा, “क्यों भगावन .. क्या बात है, इतनी देर क्यों हुई स्कूल आने में?”

भगावन ने बताया, “मैडम आज मैं एक अच्छा काम कर रहा था, इसलिए देर हो गई।”

मिस बुद्धिमती ने पूछा, “भगावन बताओ तो सही आज तुमने कौन सा अच्छा काम किया?”

भगावन ने बताया, “मैडम, मैंने आपने पांच मित्रों के साथ मिलकर एक बुजुर्ग महिला को सड़क पार करवाया।”

मिस बुद्धिमती पूछी, “ये तो अच्छी बात है। लेकिन भगावन इस छोटे से काम के लिए पांच लोग और इतना समय क्यों लगा?”

भगावन ने बताया, “क्योंकि वह महिला सड़क पार नहीं करना चाहती थी।”

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

कटहा कुत्ता

खदेरन एक दिन भोरे-भोर देखता है कि फाटक बाबू अपने लॉन में टहल रहे हैं और उनके साथ एकठो कुत्ता भी टहल रहा है। उसको बड़ा आश्चर्य हुआ। अपने घर के बरामदा से ही खदेरन अपनी उत्सुकता शांत करने के लिए पूछा, “फाटक बाबू! कुत्ता खरीद लाए हैं का?”

फाटक बाबू बोले, “हां भाई खदेरन। का करें खंजन देवी पीछे पड़ गई थीं, कि कुक्कुर चाहिए … तो लाना पड़ा।”

खदेरन बोला, “बढिया किए। कब लाए?”

फाटक बाबू बोले, “रात में ही खरीद कर लाए हैं।”

खदेरन कुत्ता को कूं-कूं करते देखकर पूछा, “फाटक बाबू, आपका ई कुता काटता है..??”

फाटक बाबू बोले, “एक काम करो खदेरन, चले आओ हम भी यही देखना चाहते हैं……!”

बुधवार, 15 दिसंबर 2010

फ़र्क़

एक दिन भगावन और उसका दोस्त रिझावन स्कूल से साथ-साथ लौट रहे थे। रास्ते में एक पोखर था। पोखर में कुछ लोग तैर रहे थे। यह देख रिझावन ने भगावन से पूछा, “यार तुझे तैरना आता है?”

भगावन ने उदासी से कहा, “नहीं यार!”

रिझावन ने उसे चिढाते हुए कहा, “क्या यार! तेरे बराबर के तो कुत्ते भी तैर लेते हैं!!”

भगवान को यह सुन कर बहुत बुरा लगा। पर भगावन तो भगावन है। उसने भी अपना पासा फेंका, “अच्छा रिझावन यह बता कि तुझे तैरना आता है?”

रिझावन ने कहा, “हां, बिल्कुल आता है।”

भगावन बोला, “फिर तुझमें और कुत्ते में क्या फ़र्क़ है?”

शनिवार, 11 दिसंबर 2010

आज सिर्फ़ एक चित्र

आज सिर्फ़ एक चित्र

इस चित्र का शीर्षक क्या हो?

…. शीर्षक ऐसा हो जिससे हास्य का सृजन हो…

noname

मेरी तरफ़ से शीर्षक है …

एक बूंद चाय की…!

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

समर्थन

एक दिन फुलमतिया जी और खदेरन में जम कर हुआ, वही जो पति-पत्नी में होता है। अपनी स्थिति कमज़ोर होते देख खदेरन ने भगावन से कहा, “तुम्हें मेरा समर्थन करना होगा।”

भगावन भी कम पोलटिशियन थोड़े है, बोला, “आपकी और मम्मी की लड़ाई के बीच मैं नहीं पड़ूंगा। पर पापा आप नर्वस न हों, आपको बाहर से मेरा समर्थन मिलता रहेगा!”

बुधवार, 8 दिसंबर 2010

बंधा दूल्हा

पांच बाराती दूल्‍हे को घोड़ी पर रस्‍सी से बांधकर ले जा रहे थे।

एक व्‍यक्ति ने पूछा- जनाब इनको रस्‍सी से क्‍यों बांधकर रखा है।

एक बाराती बोला – यह दूल्‍हा असल में भिखारी है। जब भी कोई पैंसे फेंकता है तो यह घोड़ी से उतर कर पैसे बटोरने लगता है।

मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

आई टेस्टिंग

‘आपकी आंख की जांच हो गाई जी! आपकी नजर कमजोर तो है, आइए पता लगाते हैं कितनी है कितने नम्‍बर का चश्‍मा लगेगा? सामने देखिए और ऊपरकी लाईन पढि़ए।’

’कौन सी लाइन?’

‘वह जो चार्ट पर हैं।’

‘कौन सा चार्ट?’

‘वो जो दीवार पर टंगा है।’

‘कौन सी दीवार?’

‘हम्‍म!! आपको चश्‍मे की नहीं, लाठी की जरूरत है।’

सोमवार, 6 दिसंबर 2010

माचिस

अचानक शाम को बत्ती गुल हो गई। फाटक बाबू को मोमबत्ती जलाने के लिए माचिस की दरकार थी। घर में नहीं होने के कारण खदेरन से मांगा। देखिए क्या हुआ?

“ये कैसी माचिस लाकर दिए खदेरन। एक भी तीली नहीं जल रही।”

“लेकिन फाटक बाबू मैं तो सब चेक करके लाया हूं।”

रविवार, 5 दिसंबर 2010

फुलमतिया जी के प्रश्न खदेरन की परेशानी-३

पिछली बार फुलमतिया जी के प्रश्न-१, और प्रश्न–२ का उत्तर न दे सका था खदेरन। तो उसका हौसला बढाने के लिए फुलमतिया जी ने कहा, “कोई बात नहीं अब तीसरे प्रश्न का उत्तर दो। जब फ़र्स्ट फ़्लोर पर बनाया पेट्रोल पम्प नहीं चला, मतलब एक भी ग्राहक नहीं आए तो खखोरन चारों भाइयों ने उसी फ़्लोर पर एक रेस्टोरेंट खोल लिया। पर फिर भी कोई ग्राहक नहीं आया। तब उन चारो भाइयों ने एक टैक्सी ले ली। दिन भर सवारी की खोज में इधर-उधर घूमते रहे, पर एक भी सवारी नहीं आया। बोलो क्यों?”

images (4)खदेरन माथा खुजाने लगा। उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दे। उसने  हार मान ली तो फुलमतिया जी बोलीं, “वेरी सिम्प्ल! २ भाई आगे और २ भाई पीछे बैठ कर सवारी खोज रहे थे .. हा. हा. हा..हा,…..!”

शनिवार, 4 दिसंबर 2010

आज सिर्फ़ एक चित्र

इस चित्र का शीर्षक क्या हो?

…. शीर्षक ऐसा हो जिससे हास्य का सृजन हो…

 

मेरी तरफ़ से शीर्षक है …

हमसे न पूछो इज़्ज़त वालों की इज़्ज़त का हाल अभी
हमने  भी इस शहर में रह कर थोड़ा नाम  कमाया है

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

खदेरन का लेटर

एक दिन बालकनी में बैठ कर खदेरन कुछ लिख रहा था। फाटक बाबू ने पूछा,”खदेरन, क्या कर रहे हो?”

खदेरन ने बताया,”लेटर लिख रहा हूं।”

“किसे”

“फुलमतिया जी को।”

“क्यॊं कहीं गईं हैं क्या? कल ही तो देखा था।”

“वो बाज़ार गई हैं। कुछ सामान लाने। कुछ याद आया तो सोचा बता दूं, उसे भी लेती आएंगी।”

“तो फोन कर लो ना, लेटर क्यों?”

“फुलमतिया जी को फोन ही तो किया था पहले। पर फोन से आवाज़ आई कि ‘प्लीज़ ट्राई लेटर।’ इसलिए मैं फुलमतिया जी को लेटर लिख रहा हूं।”

गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

खदेरन के घर में चोर

एक दिन खदेरन के घर में चोर घुसा, पर फुलमतिया जी के हाथों बुरी तरह पिट गया।

हो-हल्ला सुन फाटक बाबू भी पहुंच गए। फुलमतिया जी की बहादुरी से प्रसन्न हो उन्होंने कहा, “फुलमतिया जी आप तो बहुत बहादुर हैं! आपने चोर को बहुत मारा!!”

फुलमतिया जी ने पहले तो आश्चर्य से फाटक बबू को देखा फिर उन्हें एक किनारे ले जाकर बोलीं, “दरअसल फाटाक बाबू, मुझे तो पता भी नहीं था कि वह चोर है!…. हां …. मैं तो समझी कि खदेरन देर से घर आया है ….. और …. म्म… रेस्ट इज़ हिस्ट्री…!”

फाटक बाबू बोले, “इसे मिस्ट्री ही रहने दीजिए…!”

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

खदेरन के घर में चहल-पहल

कुछ दिनों से खदेरन के घर में खूब चहल-पहल थी। पर खदेरन की कोई आवाज़ नहीं आ रही  थी। यह बात फाटक बाबू को परेशानी में डाले दे रही थी। खदेरन दिख भी नहीं रहा था।

आज सुबह-सुबह बरामदे में खदेरन दिख गया। फाटक बाबू ने उसे पास बुलाया और पूछा, “क्या कहीं बाहर गए थे?”

खदेरन ने कहा, “ नहीं, घर में ही था। … क्यों?”

images (6)फाटक बाबू ने हैरानी जताते हुए कहा, “अच्छा! पर दिखे नहीं कई दिनों से! इसी लिए पूछ लिया।” फाटक बाबू ने फिर पूछा, “तुम्हारे घर में आजकल बहुत चहल-पहल है। मेहमान आए हैं क्या?”

 

खदेरन ने जवाब दिया, “हां।”

फाटक बाबू खदेरन के इस संक्षिप्त उत्तर से संतुष्ट न होते हुए पूछा, “कौन-कौन आया है घर में, बहुत सारे लोग लग रहे हैं।”

खदेरन ने इस बार पूरा बताया, “मैं, मेरी पत्नी, मेरी सास, और चारों सालियां।”

फाटक बाबू ने मुस्कुराते हुए कहा, “तभी तो ! .. अब समझा कि तुम्हारी आवाज़ क्यों नहीं सुनाई दे रही थी!! आजकल तुम्हारा तो मुंह उसी वक़्त खुलता होगा जब तुम जम्हाई लेनी हो या छींक आती होगी!!!”

मंगलवार, 30 नवंबर 2010

दीपावली पर खदेरन के घर में …

images (6)बीती दीपावली पर फुलमतिया जी मायके गई थीं। भगावन भी साथ में था।

खदेरन घर पर अकेला था। तभी घर के बाहर पुलिस की जीप आकर रुकी और इंस्पेक्टर ने आकर कहा, “हमें खबर मिली है कि आपके घर में विस्फोटक सामग्री है।”

बिना घबराए खदेरन ने कहा, “सर! खबर तो एकदम पक्की है, पर वो अभी मायके गई हुई है।”

सोमवार, 29 नवंबर 2010

आराम की ज़रूरत है

खदेरन अचानक बीमार पड़ गया। बीमारी ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही थी। चिंतित फुलमतिया जी उसे लेकर डॉक्टर के पास गई।

परीक्षण के बाद डॉक्टर उठावन सिंह ने कहा, “आपके पति को आराम की सख्त ज़रूरत है। ये लीजिए नींद की गोलियां।”

फुलमतिया जी ने पूछा, “ये गोलिया इन्हें कब दूं?”

डॉक्टर उठावन सिंह  ने बताया, “ये उनको नहीं देनी है। आपको लेनी है …..”

रविवार, 28 नवंबर 2010

खदेरन ससुराल में …!

इस बार पर्व में खदेरन ससुराल गया।

उसकी सास चम्पई देवी लगातार सात दिनों तक उसे पालक का साग खिलाती रही।

बात आठवें दिन की है।

चम्पई देवी ने खदेरन से पूछा, “दामाद जी! आज क्या खाएंगे आप?”

खदेरन ने जवाब दिया, “सासु मां अब और मेहनत आप क्या करेंगी, ऐसा कीजिए कि खेत ही दिखा दीजिए, मैं खुद ही चर आऊंगा!”

नाम क्या है?

बच्चे जब किसी के सामने जाते हैं तो लोग उनसे कुछ न कुछ पूछते ही रहते हैं।

ऐसा ही भगावन के साथ भी हुआ।

पहली बार जब भगावन को लेकर खदेरन और फुलमतिया जी फाटक बाबू के यहां गए तो फाटक बाबू भगावन को देख कर बड़े खुश हुए और बोले, “अले ले ले … कित्ता प्याला छा बच्चा है!”

फिर खदेरन से पूछे, “अपने बेटे का क्या नाम रखा है?”

खदेरन के बोलने से पहले फुलमतिया जी ने जवाब दिया, “अभी उसका नाम नहीं रखा है, प्यार से उसे भग्गू कहते हैं!”

फाटक बाबू बोले, “बहुत अच्छा है।” फिर भगावन से पूछे, “बेटे आपके पिता जी का क्या नाम है?”

भगावन ने जवाब दिया, “अंकल अभी उनका नाम नहीं रखा है। बस प्यार से पापा-पापा कहता हूं।”

शनिवार, 27 नवंबर 2010

फुलमतिया जी के प्रश्न–खदेरन की परेशानी -२

पिछली बार फुलमतिया जी के प्रश्न का उत्तर न दे सका था खदेरन। तो उसका हौसला बढाने के लिए फुलमतिया जी ने कहा, “कोई बात नहीं अब दूसरे प्रश्न का उत्तर दो। जब फ़र्स्ट फ़्लोर पर बनाया पेट्रोल पम्प नहीं चला, मतलब एक भी ग्राहक नहीं आए तो खखोरन चारों भाइयों ने उसी फ़्लोर पर एक रेस्टोरेंट खोल लिया। पर फिर भी कोई ग्राहक नहीं आया। बोलो क्यों?”

 

images (4)खदेरन माथा खुजाने लगा। उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दे। उसने  हार मान ली तो फुलमतिया जी बोलीं, “वेरी सिम्प्ल! उन्होंने पेट्रोल पम्प का बोर्ड नहीं हटया था .. हा. हा. हा..हा,…..!”

शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

आज बस एक चित्र

आज सिर्फ़ एक चित्र…

बताइए इस चित्र का शीर्षक क्या हो? ….

शीर्षक ऐसा हो जिससे हास्य का सृजन हो…

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एक शीर्षक तो मैं ही दे रही हूं …


अब चुराओ तो जानें…!

गुरुवार, 25 नवंबर 2010

बुझावन के प्रश्न बतावन का जवाब-१२

बुझावन :: अच्छा यह बताइए कि लेक्चरर कौन होता है?

 

 

बतावन :: लेक्चरर वह व्यक्ति होता है जो उस समय भी बिना रुके बोलता रहता है जब कोई दूसरा सो रहा हो।

बुधवार, 24 नवंबर 2010

आंसू

कभी-कभार खदेरन भगावन को पढाने बैठ जाता था। अब भगावन तो भगावन है। बाप कोई प्रश्न करे उसके पहले वही प्रश्न कर दे। उस दिन भी ऐसा ही हुआ। भगावन ने पूछा, “ पापा! मां के आंसू और पत्नी के आंसू में क्या फ़र्क़ होता है?”

खदेरन ने जवाब दिया, “बेटा, मां के आंसू दिल पर असर करते हैं और पत्नी के आंसू जेब पर!”

मंगलवार, 23 नवंबर 2010

खुजली है क्या?

फुलमतिया जी मयके गई हुई थीं।

उस दिन फुलमतिया जी के नहीं होने के कारण खदेरन को होटल जाना पड़ा भोजन हेतु। कोने की एक सीट पर जगह लेकर बैठ गया। बेयरा आया और उसके सामने मेनू कार्ड रख कर थोड़ा हट कर खड़ा हो गया। कुछ ही पल बाद खदेरन की नज़र उस पर गई तो देखता है कि वह शरीर के विभिन्न हिस्सों को नोचे जा रहा है। खदेरन ने उसे पास बुलाकर पूछा, “खुजली है क्या …?”

images (5)बेयरा ने अपनी धुन में जवाब दिया, “साहब! मेनू कार्ड देख लीजिए, मेनू में अगर लिखा है तो ज़रूर मिलेगी।”

सोमवार, 22 नवंबर 2010

खांसी जएगी क्या?

फिर जमी थी महफ़िल, यारों की। खदेरन को भी बुलावा था, सो वह भी पहुंच गया। सुबह से उसे काफ़ी खांसी हो रही थी। जब यार-दोस्तो नें पीने का ऑफ़र दिया तो खदेरन ने कहा, “यार मैं नहीं पी पाऊंगा। बहुत खांसी हो रही है।”

सुखारी ने कहा, “ईज़ी यार, सब चला जाएगा?”

खदेरन को यक़ीन नहीं हुआ और बड़े भोलेपन से उसने पूछा, “क्या शराब पीने से खांसी जाती है?”

जलावन सिंह ने बताया, “क्यों नहीं जाएगी? जब मेरा घर, खेत, पैसा,

सब कुछ चला गया तो तेरी खांसी क्या चीज़ है।”

रविवार, 21 नवंबर 2010

फुलमतिया जी के प्रश्न–खदेरन की परेशानी -१

फुलमतिया जी ने खदेरन के आई.क्यू. क्लास ज्वायन करने के कई दिनों के बाद उससे पूछा, “इतने दिन से बुद्धि बढाने वाला स्कूल जा रहे हो कुछ सीखा कि अभी भी अकल पर पर्दा पड़ा ही रहता है?”

खदेरन बोला, “बहुत कुछ सीखा है।”

फुलमतिया जी ने चैलेंज दिया, अच्छा तो हम तुमसे जेनरल नॉलेज वाला प्रश्न पूछें बताओगे?”

खदेरन चहका, “हां-हां, पूछो!”

फुलमतिया जी ने पूछा, “ अच्छा तो बताओ कि खखोरन के तीन भाई थे, बहन नहीं। तो खखोरन के पिता की कितनी औलाद थी?”

खदेरन झट से बोला, “चार!”

फुलमतिया जी बोलीं, “गुड! अब बताओ कि खखोरन और उसके तीनों भाईयों ने मिलकर एक पेट्रोल पम्प खोला। पर उसमें एक भी ग्राहक नहीं आया। बोलो क्यों?”

images (4)खदेरन माथा खुजाने लगा। उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दे। उसने  हार मान ली तो फुलमतिया जी बोलीं, “वेरी सिम्प्ल! पेट्रोल पम्प फ़र्स्ट फ़्लोर पर था .. हा. हा. हा..हा,…..!”