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रविवार, 17 अक्तूबर 2010

कितने पैसे?

कितने पैसे?

खदेरन एक बार आगरा घूमने गया। स्टेशन से बाहर आते ही उसे फूलमतिया जी की सख़्त हिदायत याद आ गई। ‘तुम्हें सब ठग लेते हैं। किसी ऑटो रिक्शा में बैठने के पहले भाड़ा पूछ कर बैठना’!

उसने एक ऑटो रिक्शा वाले  से कहा, “क्यों भाई ताजमहल के कितने पैसे लोगे?”

ऑटो रिक्शा वाले ने फट से जवाब दिया, “बाबूजी! मैं ताजमहल का मालिक थोड़े ही हूं, जो उसे आपको बेच दूंगा!”

9 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद उम्दा
    विजयादशमी की बधाई एवं शुभकामनाएं

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  2. नहीं बिना सोचे बोलना चाहिए इसी से हास्य उत्पन्न होता है :))

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  3. कम से कम बोलना तो चाहिए ..
    हा-हा-हा
    मज़ेदार!

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  4. यह आपका ब्लॉग तो बडा प्यारा है जी।
    एक तो पढने में ज्यादा समय नहीं लगता।
    दूसरा, फ़ेफ़डों को व्यायाम मिल जाता है।
    यदि ठहाका न मार सका तो कम से कम होंठों को मुस्कुराने से व्यायाम मिल जाता है।
    और सबसे अच्छी बात है कि यहाँ टिप्पणी करना बडा आसान है।
    सोचना नहीं पढता।
    एक सीधा सादा शब्द "हा" को तीन बार लिखने से टिप्पाणी तैयार

    लीजीए, "हा हा हा"
    यूँही हमारा मनोरंजन करते रहिए।
    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

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  5. असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक
    विजयादशमी पर्व की शुभकामनाएँ!

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  6. मेरे लिए तो सिर्फ तीन बार हा हा हा लिखने से काम नहीं चलने वाला.. क्या पता कोई टिप्पणी की इस विधा पर चिठियाना शुरू कर दें.. इसलिए कुछ तो कहना ही होगा... मज़ा आ गया, टैक्सी वाले ने यह नहीं पूछा कि तुम्हारा नाम बण्टी तो नहीं!!

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  7. जवाब नहीं खदेरन का और ऑटो वाले का.वैसे केरेक्टर्स के मजेदार नाम के साथ चुटकुले प्रस्तुत करने में आपका भी जवाब नहीं.

    कुँवर कुसुमेश
    ब्लॉग:kunwarkusumesh.blogspot.com

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