रिश्ते की चाहत!
बात तब की है जब खदेरन की फुलमतिया जी से शादी नहीं हुई थी।
उसे बगल के मोहल्ले की एक लड़की पसंद आ गई। दो-चार दिन खदेरन उसके आगे-पीछे घूमा। लड़की ने भी उसे देख कर हंस मुस्कुरा दिया। खदेरन उस पर फ़िदा हो गया। यार-दोस्तों से सलाह-मशवरा किया उसने।
दोस्तों ने कहा, “देख यार है तो वो बड़ी ख़ूबसूरत और कई लड़के उसके आगे-पीछे घूमते हैं। तूने अगर देरी की तो समझ गई तेरे हाथ से वो।”
खदेरन को सलाह अच्छी लगी। पर उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे? उसने दोस्तों से ही पूछा, “क्या करूं? मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा। तुम लोग ही बताओ।”
उन्होंने सलाह दी, “झट से उसके पिताजी से उसका हाथ मांग ले।”
खदेरन को यह सलाह भी पसंद आई। पहुंच गया उस लड़की के घर। उसके पिताजी गार्डेन में ही थी। उनको दुआ-सलाम किया। तो वे चौंके और बोले, “तू कौन?”
खदेरन बोला, “मैं खदेरन! पड़ोस के मोहल्ले में रहता हूं। आपकी बेटी मुझे पसंद आ गई है। मैं उसे दिल-ओ-जान से चाहता हूं। आप उसका रिश्ता मुझसे तय कर दें।”
लड़की के पिताजी बोले, “अच्छा तो वो तू है! तो मेरी बेटी तेरे बारे में कहती थी कि कुछ दिनों से एक लड़का उसके चक्कर काट रहा है।”
उसके बाद, मत पूछिए। लड़की के पिता ने उसे ख़ूब मारा-पिटा।
पिटाई खाकर खदेरन उठा, कपड़े झाड़े और बोला, “तो फिर मैं इसे इंकार समझूं … … ?”
बेचारा भोला- भाला खदेरन ..!
जवाब देंहटाएंभोला खदेरन - अति भोला प्रश्न :))
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंजवाब पर तो हक़ बनता है इंसान का, बुनियादी हक़!!
जवाब देंहटाएंसमझदार के लिए इशारा काफी होता, मियां खदेरन को कोड़ा भी लगे थोडा ...
जवाब देंहटाएंपूछ तो लेना ही था, हो सकता है कि गुस्सा शान्त हो गया हो।
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंखदेरन की खैर नहीं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
राजभाषा हिन्दी पर कविताओं में प्रतीक शब्दों में नए सूक्ष्म अर्थ भरता है!
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बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंअब कभी ये भी बता दीजियेगा की खदेरन जी ने फूलमतिया जी से लव मैरिज की है या अरेंज :)
बहुत खूब .....वाह ....
जवाब देंहटाएंसही तो है बेचारा पीटने से ये थोड़ी पता चलाता है की जवाब ना में है हो सकता है खदेरन को आजमा रहे हो पिट कर |
जवाब देंहटाएंहाय ! बेचारा !
जवाब देंहटाएंek baar fir se khaderan ko bhej kar dekhen.......:P
जवाब देंहटाएंहिम्मत की दाद देनी पड़ेगी, वैसे आखिर में एक बार फिर से पूछ लेना बनता है.... :-)
जवाब देंहटाएंपिटाई खाकर खदेरन उठा, कपड़े झाड़े और बोला, “तो फिर मैं इसे इंकार समझूं … … ?
जवाब देंहटाएंclimax मजेदार है.
कुँवर कुसुमेश
यह तो कुछ नहीं है, जी।
जवाब देंहटाएंलडकी पटाने के लिए तो लोग चाँद तारे भी तोड ले आते हैं।
सात समुंदर पार के पहाडों पर चढने के लिए तैयार हो जाते हैं।
एक मामूली पिटाइ से क्या।
खदेरन तो बडा अच्छा optimist निकला।
पूछ लेने से तसल्ली तो हो जायेगी कम से कम..पिट तो लिए ही हैं.
जवाब देंहटाएंवैसे जबाब क्या दिया आखिर में पिता जी ने???
जवाब देंहटाएंपिटने के बाद भी जवाब की चाह..... बहुत खूब, लाजवाब. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
डोरोथी.
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जवाब देंहटाएंबड़ा बेआबरू होकर उसके कुचे से निकला बेचारा। !
लेकिन हिम्मत नहीं हारा।
उम्मीद की शम्मा जलाए हुए है।
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हा हा हा हा .......बहुत बढ़िया ......
जवाब देंहटाएंबेचारा खदेरन ...
जवाब देंहटाएं6/10
जवाब देंहटाएंअच्छा हास्य / मुस्कुराने को बाध्य करती पोस्ट
खदेरन जिस तरह का किरदार नजर आता है, उससे उम्मीद यही है कि वो अभी तीन-चार दिन ट्राई और करेगा :)
मान गए खदेरन.... पीट जाओ , कूट जाओ, पर हार मत मानो..........:)
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